उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का गुरुवार को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। काफी लंबे समय से बीमार चल रहे तिवारी जी का दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में इलाज चल रहा था। डॉक्टरों ने बताया कि मैक्स सुपर स्पेशिऐलिटी अस्पताल में भर्ती एनडी तिवारी ने दोपहर 2.50 बजे अंतिम सांस ली। 12 अक्टूबर को उन्हें अस्पताल के ICU में शिफ्ट किया गया था। बाद में तबीयत में सुधार दिखने पर उन्हें एक प्राइवेट रूम में शिफ्ट किया गया था। वह बुखार और न्यूमोनिया से पीड़ित थे। डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनकी तबीयत पर नजर रख रही थी। यह संयोग ही है कि 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल के बलूटी गांव में जन्मे एनडी तिवारी का निधन भी 18 अक्टूबर को जन्मदिन पर ही हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर एनडी तिवारी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने लिखा, 'एनडी तिवारी के निधन से गहरा दुख हुआ। एक दिग्गज नेता, जो अपने प्रशासनिक स्किल्स के लिए जाने जाते थे। उन्हें इंडस्ट्रियल ग्रोथ के साथ-साथ यूपी और उत्तराखंड के विकास के लिए किए गए उनके प्रयासों के लिए याद किया जाएगा।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एनडी तिवारी के निधन पर शोक जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'वरिष्ठ राजनेता नारायण दत्त तिवारी के निधन का दु:खद समाचार प्राप्त हुआ। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था। उनका निधन भारतीय राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एनडी तिवारी के निधन पर शोक जताया है. उन्होंने ट्वीट किया, 'उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करता हूं. ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा की शांति व परिजनों को दुःख सहने की प्रार्थना करता हूं.' रावत ने कहा, 'एनडी तिवारी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. विरोधी दल में होने के बावजूद उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर रहकर सदैव अपना स्नेह बनाए रखा. तिवारी के जाने से भारत की राजनीति में जो शून्य उभरा है, उसकी भरपाई कर पाना मुश्किल है.
उन्होंने कहा, 'उत्तराखंड तिवारी के योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा. नवोदित राज्य उत्तराखंड को आर्थिक और औद्योगिक विकास की रफ़्तार से अपने पैरों पर खड़ा करने में तिवारी ने अहम भूमिका निभाई.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी नारायण दत्त तिवारी के निधन पर शोक जताया है. यूपी सीएमओ ट्विटर हैंडल से किए गए ट्वीट में कहा गया कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के निधन पर शोक व्यक्त किया है. सीएम योगी ने नारायण दत्त तिवारी के शोक संतप्त परिजनों के प्रति भी संवेदना व्यक्त की है.
एनडी तिवारी का जन्म नैनीताल जिले के बलूटी गांव में एक जमींदार परिवार में 18 अक्टूबर 1925 को हुआ। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। तिवारी के पिता असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर अपनी नौकरी छोड़ दी।
एनडी तिवारी ने अपनी पढ़ाई हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल के स्कूलों से की। साल 1942 में एनडी तिवारी ने अपने एक लेख में ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की। इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल भेजा गया। इस जेल में तिवारी के पिता भी बंद थे।
तिवारी को नैनीताल जेल में 15 महीने बिताने पड़े। तिवारी को जेल से 1944 में रिहा किया गया। इसके बाद तिवारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए। यहां वह छात्र राजनीति की तरफ झुके। बाद में उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया।
तिवारी 1945 से 1949 तक अखिल भारतीय छात्र कांग्रेस के सचिव भी रहे। 1990 के दशक में तिवारी प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। लोकसभा चुनाव में महज 800 वोटों से हार जाने के कारण वह पीएम नहीं बन पाए। कांग्रेस ने पीएम पद के लिए नरसिम्हा राव का नाम आगे किया।
भारतीय राजनीति में एनडी तिवारी का एक बड़ा कद था। उनके निधन से राजनीति को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। वह भारतीय राजनीति के ऐसे विरल राजनेता हैं जो दो अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री बने हैं। यही नहीं उप्र में तीन बार मुख्यमंत्री बनने के अलावा एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे। आजादी के आंदोलन के दौरान एनडी तिवारी को बरेली के सेंट्रल जेल में बंद किया गया था। स्वतंत्रता के बाद पहली बार हुए चुनावों में वह नैनीताल से प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट जीतकर विधायक बने। कई बार केंद्र में मंत्री और चार बार यूपी तथा एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे तिवारी का विवादों से भी नाता रहा है। एनडी तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए किया था।
जनवरी 1976 में पहली बार एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 1979-80 तक चौधरी चरण सिंह की सरकार में वह वित्त और संसदीय कार्यमंत्री रहे। साल 1984 और 1988 में दो बार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। साल 1994 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। साल 1995 में एनडी तिवारी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के साथ मिलकर ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस पार्टी का गठन किया। 1996 में वह लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1997 में दोबारा कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस की तरफ से लोकसभा पहुंचे। साल 2002 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और अगस्त 2007 में उन्हें आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाया गया।
राजनेता नारायण दत्त तिवारी को लेकर कई बाते हवाओं में उडती थी, मसलन वह सोने का सिक्का बनती दाल में डलवाते हैं। तिवारीजी को सजने संवरने का खास शौक रहा। तमाम तरह के सौंदर्य प्रसाधन उनके कक्ष में देखे जाते थे। वे रंगीन मिजाजी किस्म के नेता भी माने गए। उनकी छवि को लेकर गीत भी बने। लेकिन प्रशासनिक अनुभव कुशलता और राजनीतिक दक्षता को भी लोग स्वीकारते रहे।
निजी तौर पर वह भ्रष्टाचार के लिए नहीं जाने गए। उनकी योग्यता क्षमता का लाभ देश को मिलता रहा। वह केंद्र में योजना उद्योग वित्त और विदेश मंत्रालय को भी संभाल चुके हैं, लेकिन उनका परिचय महज इतना भर नहीं था। भारतीय राजनीति में अटलबिहारी वाजपेयी अजातशत्रु कहे गए, लोहिया को धरती पुत्र कहा गया, जयप्रकाश नारायण लोकनायक कहे गए, ऐसे ही तिवारी को जनमानस ने विकासपुत्र कहकर पुकारा। वह ऐसे मांझी रहे हैं जो कुशलता से अपनी नौका को हर बार किनारे तक ले गए हैं लेकिन एक अहम वक्त पर कश्ती की पतवार हाथों से तब फिसली जब उन्हें देश का नेतृत्व हाथ में लेना था। कुशल प्रशासक, अच्छे वक्ता, गंभीर अध्यनवेत्ता, काव्य सौंदर्य की समझ, समाज के लिए निरंतर संघर्ष, राजनीति की लंबी जद्दोजहद, पारंपरिक गीतों के रस में डूबे नारायण दत्त तिवारी का जीवन अपनी विविधताओं में एक विरल व्यक्तिक्व के रूप में सामने आता है। उनकी कई छवियां है|
एनडी के व्यक्तित्व में कई खूबियां एक साथ समाई थी। वह स्मार्ट थे। किसी लथपथ राजनेता के बजाय सजे संवरे तिवारी को ही लोगों ने अपने बीच पाया। भाषण कला उनके पास थी ही अंग्रेजी भाषा का ज्ञान तो था ही, फ्रेच लेटिन साहित्य को भी उन्होंने आत्मसात किया था। पहाडी गीतों की रसधार में वह कब बह जाए, कब नृत्य करने लगे, कब ताल से ताल मिलाने लगे उनके मन के अलावा कोई नहीं पकड सकता था। यह उनका रसियापन था। बृज एवं मंगल गीतों के वह शौकीन थे। वह ढोल हाथ में लेकर हल्की हल्की थाप से फाग के गीत भी सुना लेते थे, पूर्व में कहीं होते तो कजरी चेती गाते। वह विशुद्ध राजनेता थे मगर गीत सगीत उनके जीवन में भरपूर था। लोकजीवन के रंग वह बखूबी समझते थे। और कहीं फिल्मी गीत की चाहत हो तो सधे सुर में बहारों फूल बरसांओ जैसा गीत भी गा सकते थे। ये सब तराने गीत, लोकगीत में वह भीगे हुए थे।
पहला विवाद पितृत्व मामले को लेकर रहा जब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद वह अपना खून का सैंपल देने को राजी हुए। दिल्ली हाईकोर्ट में उनके रक्त के नमूने संबंधी डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक हुई और पता चला कि पितृत्च वाद दायर करने वाले रोहित शेखर तिवारी ही एनडी तिवारी के बेटे हैं। रोहित ने 2008 में कोर्ट का रूख किया था लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी तिवारी लगातार ब्लड सैंपल देने से इनकार करते रहे थे। हालांकि एनडी तिवारी चाहते थे कि उनकी डीएनए रिपोर्ट गोपनीय रहे लेकिन अदालत ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी।
तिवारी की पहचान एक कांग्रेसी नेता के रूप में रही है लेकिन एक ऐसा समय भी आया जब उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर 1995 में ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस के नाम से पार्टी बनाई। लेकिन कांग्रेस से उनकी यह दूरी ज्यादा समय तक नहीं चल पाई और दो साल बाद ही वह दोबारा कांग्रेस में वापस आ गए।
एनडी तिवारी ने 14 मई 2014 को 89 साल की उम्र में रोहित तिवारी की मां उज्जवला तिवारी से शादी की। रोहित तिवारी एनडी तिवारी के जैविक पुत्र हैं।
एनडी तिवारी के बारे में सबसे बड़ा विवाद उस समय पैदा हुआ जब वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे। साल 2007 में उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। विवादों में आने के बाद उन्हें आंध्र प्रदेश के राज्यपाल पद से हटना पड़ा था। आंध्र प्रदेश के एक चैनल ने एक वीडियो चलाया जिसने राजनीतिक जगत में खलबली मचा दी। इस वीडियो में तिवारी की कथित रूप से कुछ महिलाओं के साथ दिख रहे थे। हालांकि बाद में उन्होंने माफी मांगी लेकिन यह भी कहा यह एक साजिश के तहत किया गया।
एनडी तिवारी ने जनवरी 2017 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन किया। तिवारी का यह समर्थन भाजपा के विकास कार्यों के लिए था। 20 सितंबर 2017 को तिवारी को ब्रेन स्ट्रोक हुआ। इसके बाद से वह बीमार रहने लगे थे।
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