पर्यावरण संरक्षण प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक दायित्व है, और सभी को अपने जीवन में पांच पेड लगाकर उनके संरक्षण एवं संवर्धन का संकल्प अवश्य लेना चाहये ,यह विचार प्रसिद्ध समाजसेवी एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष राजीव अरोड़ा ने श्री कल्पतरु संसथान की और से आयोजित पोधारोपण कार्यक्रम में कहि श्री अरोड़ा ने सी स्कीम इस्थित आवास परिसर में गुडेल का पौधा लगा कर श्री कल्पतरु संसथान के प्रयासों की सराहना करते हुए बधाई दी ,उन्होंने गहलोत सरकार में चलाई गई हरित राजस्थान में संसथान की भूमिका को भी रेखांकित किया ,इस अवसर पर ट्री मेन विष्णु लाम्बा, पूनम खंगारोत ,अभिषेक शर्मा ,योगेश शर्मा ,रवि कुमार,शैफाली,नीता शुक्ल सहित सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित थे।
इस अवसर पर उन्होंने ये भी कहा की स्वच्छ पर्यावरण में ही इंसान स्वस्थ रह सकता है और इसके लिए पेड़ों का होना बहुत जरूरी है ,लोग वृक्षों के महत्व को समझें और पर्यावरण के रक्षा के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाए , जितने अधिक पौधे लगाए जाएंगे और उनकी उचित देखभाल करने से सभी लोगों का फायदा होगा, पौधे जीवन देते हैं, जिस रफ्तार से पेड़ काटे जा रहे हैं उस रफ्तार से पौधरोपित नहीं किए जा रहे हैं, प्रत्येक वर्ष लाखों पौधे लगाए जाते हैं लेकिन कुछ ही दिन में सुरक्षा के अभाव में गायब हो जाते हैं, विभागीय अधिकारी कागजों में पौधरोपण करने के बजाए धरातल पर करें, साथ ही सभी प्रधानों और जन प्रतिनिधियों को भी इस अभियान में जोश और उत्साह के साथ जुटने का आह्वान किया, पर्यावरण सुरक्षित रहने से जीव- जंतु, पशु-पक्षी मनुष्य का जीवन तभी सुरक्षित रहेगा जब पर्यावरण बचा रहेगा, वृक्ष के बिना धरती पर जीवन की परिकल्पना संभव नहीं है, जितना पेड़ लगाना जिम्मेदारी है, उससे अधिक उसका सुरक्षा करना हम सबका दायित्व है, शुद्ध वायु, जल संचय का स्त्रोत वृक्ष हैं, प्रदूषण जलवायु परिवर्तन तथा ताप क्रम की वृद्धि को नियंत्रित रखने में वृक्षों का महत्वपूर्ण योगदान है, वृक्ष आक्सीजन देकर कार्बन डाईआक्साईड लेकर लोगों के जीवन को सुरक्षित करता है, वृक्ष भयंकर चक्रवात को खुद झेलकर दैवीय आपदा से मानव जीवन की रक्षा करता है।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, दो चीजें असीमित हैं−एक ब्रह्माण्ड तथा दूसरी मानव की मूर्खता, मानव ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं, इसमें से पर्यावरण प्रदूषण अहम है, विधानसभा, संसद, न्यायालय, उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय, अखबार, टेलीविजन सब जगह पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण पर चर्चा है, फिर भी न तो कोई दोषी पाया जाता है न किसी को सजा मिलती है, अनेकों स्थलों पर प्रदूषण का स्तर जरूर कम होता है, पर पूर्णतया नियंत्रित नहीं हो पा रहा है, तो हम किसे दोषी ठहराएं, क्या किसी को दोषी ठहराना ही जरूरी है? और किसी को सजा ही देना जरूरी है, या दंड देना ही समाधान है? मेरी समझ में शायद नहीं, चूंकि दंड संहिता से ही सुधार होता तो अब तक अदालतों से दंडित लाखों लोगों के उदाहरण द्वारा सारे प्रकार के अपराध ही बंद हो चुके होते, पर हम देखते हैं, ऐसा हुआ नहीं। तदैव, हम समझते हैं कि इसके लिए जरूरी है जन−जागृति, जन जिम्मेदारी, जन भागीदारी, जन कार्यवाही, सामाजिक दायित्व एवं सामाजिक संकल्प।
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