राजस्थान में जीका वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 100 तक पहुंच चुकी है। नियंत्रण के उपाय तेज करने के लिए केंद्र ने बुधवार को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की टीम को रवाना कर दिया है। राजस्थान में जीका वायरस फैलने की अहम वजह है फॉगिंग न होना. फॉगिंग के जरिए मच्छरों को पैदा होने से रोका जाता है.
जयपुर म्यूनिसिपैलिटी अस्पताल के एक डॉक्टर के मुताबिक पिछले दस साल से फॉगिंग नहीं हुई है. जयपुर में जीका वायरस का पहला केस सामने आने के दस दिन बाद पहली बार फॉगिंग का फैसला हुआ. जयपुर डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल, हेल्थ और फेमिली वेलफेयर के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर डॉ. नरोत्तम शर्मा कहते हैं, ‘जयपुर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (जेएमसी) और राजस्थान सरकार का स्वास्थ्य विभाग इन हालात के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं.
डॉ. नरोत्तम शर्मा के मुताबिक जयपुर के एसएमएस गवर्नमेंट हॉस्पिटल से वायरस की रिपोर्ट सही साबित नहीं हुई. डॉक्टर्स ने पुणे स्थित लैब से पुष्टि का इंतजार किया. एक बार जब रिपोर्ट में जीका का होना साफ हुआ, उसके बाद जयपुर के शास्त्री नगर में फॉगिंग का आदेश दिया गया.
स्वास्थ्य मंत्रलय ने बताया कि कुल पीड़ितों में से 23 गर्भवती महिलाएं हैं। बुधवार को जयपुर और दो पड़ोसी जिलों में 20 नए मामले सामने आए हैं। अधिकारी ने बताया, ‘आइसीएमआर के विशेषज्ञों का दल जयपुर पहुंच गया है। यह टीम जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों को मारने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कीटनाशकों में बदलाव करेगी। जिन मच्छरों से डेंगू और चिकनगुनिया के वायरस फैलते हैं उन्हीं से जीका वायरस भी फैल रहे हैं।’
सिंधी कैंप और घनी आबादी वाले शास्त्री नगर इलाके से लिए गए मच्छरों के नमूने में जीका वायरस पाया गया है। राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वीनू गुप्ता ने जयपुर में बैठक की अध्यक्षता की। राजस्थान में संक्रमण का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है।
जीका वायरस तेजी से फैलने के बाद दो बड़ी और पांच छोटी मशीनों के लिए टेंडर स्वीकार किए गए. जेएमसी का दावा है कि अब वे मशीनें लगाई जा चुकी हैं और पूरी तरह काम कर रही हैं. जेएमसी की डॉक्टर सोनिया अग्रवाल के मुताबिक मशीनों और सुविधाओं की उपलब्धता के हिसाब से फॉगिंग की जा रही है. वायरस अब शास्त्री नगर से सिंधी कैंप राजपूत हॉस्टल पहुंच गया है, जहां छह छात्र पॉजिटिव पाए गए हैं. उन्हें अलग कर दिया गया है. करीब 150 छात्रों को अंदर ही रखा जा रहा है.
एक मुद्दा यह भी है की फॉगिंग के लिए जिस केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है, मच्छर उसके आदी हो गए हैं. उन्हें अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा. दो दशक पहले, जब फॉगिंग के लिए केमिकल की मात्रा बढ़ाई गई थी, तब तमाम निवासी बीमार पड़ गए थे. स्किन यानी त्वचा संबंधित बीमारियों की बहुत सी शिकायतें आई थीं. इसके चलते मानवाधिकार आयोग ने फॉगिंग के लिए केमिकल के स्तर की सीमा तय कर दी थी. डॉ. अग्रवाल कहते हैं, ‘डिपार्टमेंट अब आयोग से केमिकल की मात्रा बढ़ाने को लेकर बात कर रहा है.’ अभी फॉगिंग के लिए 1:19 के रेशियो में मुख्य केमिकल पाइरेथ्रम और डीजल का इस्तेमाल होता है.
डिपार्टमेंट और डॉक्टर हालात पर नियंत्रण कर पाने में नाकाम दिख रहे हैं. अग्रवाल का कहना है कि अब दिन में दो बार फॉगिंग हो रही है. एक बार में तीन लगभग तीन वॉर्ड कवर हो रहे हैं. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी, ताकि फॉगिंग का पूरा असर हो सके. इसी तरह के हालात 2008-09 में देखे गए थे, जब शहर में स्वाइन फ्लू का पहला मामला सामने आया था.
डॉक्टर्स के अनुसार वायरस इतना खतरनाक नहीं है कि इससे किसी की जान चली जाए. हालांकि, जीका का सबसे ज्यादा असर गर्भवती महिलाओं में गर्भ के पहले तीन महीने में सबसे ज्यादा होता है. इस वायरस की वजह से बच्चे के मानसिक विकास में बाधा आती है. स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित इलाकों में गर्भवती महिलाओं का खास ध्यान रखने का आदेश दिया है. उन पर प्रभावित इलाकों में जाने पर रोक तक लगी जा रही है. वायरस के लक्षणों में बुखार, खांसी, शरीर में दर्द और छींक आना है.
इस बीच, जेएमसी उस कंपनी के साथ भी जूझ रही है, जिसे कूड़ा इकट्ठा करने का काम सौंपा गया है. उसके साथ विवाद की वजह से आधे शहर से कूड़ा नहीं उठ रहा है. विवाद दोनों पक्षों में पैसों के एग्रीमेंट को लेकर है. जैसे-जैसे कूड़ा जमा हो रहा है, मच्छरों के लिए लार्वा पैदा करने की जगह बढ़ रही है. इससे वायरस फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ता जा रहा है.
जयपुर म्यूनिसिपैलिटी अस्पताल के एक डॉक्टर के मुताबिक पिछले दस साल से फॉगिंग नहीं हुई है. जयपुर में जीका वायरस का पहला केस सामने आने के दस दिन बाद पहली बार फॉगिंग का फैसला हुआ. जयपुर डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल, हेल्थ और फेमिली वेलफेयर के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर डॉ. नरोत्तम शर्मा कहते हैं, ‘जयपुर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (जेएमसी) और राजस्थान सरकार का स्वास्थ्य विभाग इन हालात के लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं.
डॉ. नरोत्तम शर्मा के मुताबिक जयपुर के एसएमएस गवर्नमेंट हॉस्पिटल से वायरस की रिपोर्ट सही साबित नहीं हुई. डॉक्टर्स ने पुणे स्थित लैब से पुष्टि का इंतजार किया. एक बार जब रिपोर्ट में जीका का होना साफ हुआ, उसके बाद जयपुर के शास्त्री नगर में फॉगिंग का आदेश दिया गया.
स्वास्थ्य मंत्रलय ने बताया कि कुल पीड़ितों में से 23 गर्भवती महिलाएं हैं। बुधवार को जयपुर और दो पड़ोसी जिलों में 20 नए मामले सामने आए हैं। अधिकारी ने बताया, ‘आइसीएमआर के विशेषज्ञों का दल जयपुर पहुंच गया है। यह टीम जीका वायरस फैलाने वाले मच्छरों को मारने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कीटनाशकों में बदलाव करेगी। जिन मच्छरों से डेंगू और चिकनगुनिया के वायरस फैलते हैं उन्हीं से जीका वायरस भी फैल रहे हैं।’
सिंधी कैंप और घनी आबादी वाले शास्त्री नगर इलाके से लिए गए मच्छरों के नमूने में जीका वायरस पाया गया है। राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वीनू गुप्ता ने जयपुर में बैठक की अध्यक्षता की। राजस्थान में संक्रमण का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है।
जीका वायरस तेजी से फैलने के बाद दो बड़ी और पांच छोटी मशीनों के लिए टेंडर स्वीकार किए गए. जेएमसी का दावा है कि अब वे मशीनें लगाई जा चुकी हैं और पूरी तरह काम कर रही हैं. जेएमसी की डॉक्टर सोनिया अग्रवाल के मुताबिक मशीनों और सुविधाओं की उपलब्धता के हिसाब से फॉगिंग की जा रही है. वायरस अब शास्त्री नगर से सिंधी कैंप राजपूत हॉस्टल पहुंच गया है, जहां छह छात्र पॉजिटिव पाए गए हैं. उन्हें अलग कर दिया गया है. करीब 150 छात्रों को अंदर ही रखा जा रहा है.
एक मुद्दा यह भी है की फॉगिंग के लिए जिस केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है, मच्छर उसके आदी हो गए हैं. उन्हें अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा. दो दशक पहले, जब फॉगिंग के लिए केमिकल की मात्रा बढ़ाई गई थी, तब तमाम निवासी बीमार पड़ गए थे. स्किन यानी त्वचा संबंधित बीमारियों की बहुत सी शिकायतें आई थीं. इसके चलते मानवाधिकार आयोग ने फॉगिंग के लिए केमिकल के स्तर की सीमा तय कर दी थी. डॉ. अग्रवाल कहते हैं, ‘डिपार्टमेंट अब आयोग से केमिकल की मात्रा बढ़ाने को लेकर बात कर रहा है.’ अभी फॉगिंग के लिए 1:19 के रेशियो में मुख्य केमिकल पाइरेथ्रम और डीजल का इस्तेमाल होता है.
डिपार्टमेंट और डॉक्टर हालात पर नियंत्रण कर पाने में नाकाम दिख रहे हैं. अग्रवाल का कहना है कि अब दिन में दो बार फॉगिंग हो रही है. एक बार में तीन लगभग तीन वॉर्ड कवर हो रहे हैं. उम्मीद है कि यह प्रक्रिया 25 अक्टूबर तक चलेगी, ताकि फॉगिंग का पूरा असर हो सके. इसी तरह के हालात 2008-09 में देखे गए थे, जब शहर में स्वाइन फ्लू का पहला मामला सामने आया था.
डॉक्टर्स के अनुसार वायरस इतना खतरनाक नहीं है कि इससे किसी की जान चली जाए. हालांकि, जीका का सबसे ज्यादा असर गर्भवती महिलाओं में गर्भ के पहले तीन महीने में सबसे ज्यादा होता है. इस वायरस की वजह से बच्चे के मानसिक विकास में बाधा आती है. स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित इलाकों में गर्भवती महिलाओं का खास ध्यान रखने का आदेश दिया है. उन पर प्रभावित इलाकों में जाने पर रोक तक लगी जा रही है. वायरस के लक्षणों में बुखार, खांसी, शरीर में दर्द और छींक आना है.
इस बीच, जेएमसी उस कंपनी के साथ भी जूझ रही है, जिसे कूड़ा इकट्ठा करने का काम सौंपा गया है. उसके साथ विवाद की वजह से आधे शहर से कूड़ा नहीं उठ रहा है. विवाद दोनों पक्षों में पैसों के एग्रीमेंट को लेकर है. जैसे-जैसे कूड़ा जमा हो रहा है, मच्छरों के लिए लार्वा पैदा करने की जगह बढ़ रही है. इससे वायरस फैलने का खतरा और ज्यादा बढ़ता जा रहा है.
0 comments:
Post a comment