
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की आधिकारिक भाषा इंग्लिश है जबकि निचली अदालतों में हिंदी व प्रादेशिक भाषा में भी काम हो सकता है. संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार इंग्लिश सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की आधिकारिक भाषा है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने हैरानी जताई कि उनके सामने अपनी पदोन्नति की मांग को लेकर दलीलें पेश करने वाले एक जज सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात हिंदी में रख रहे हैं. सीजेआई ने उन्हें याद दिलाया कि आप सुप्रीम कोर्ट में हैं और यहां उन्हें अपनी बात इंग्लिश में ही रखनी होगी.
असल गुरुवार को अपने प्रमोशन की मांग को लेकर दलील पेश करते वक्त अतिरिक्त जिला जज ने सीजेआई के सामने अपनी बात हिंदी में रखी थी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, 'आप जज हैं, आप इंग्लिश नहीं बोल पाते, तब अतिरिक्त जिला जज ने कहा कि मैं इंग्लिश नहीं बोलता, मैं अपने सभी फैसले हिंदी में ही देता हूं.' इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, 'आप अपना कामकाज हिंदी में करते होगें और फैसला भी हिंदी में दे सकते हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जब आप आते हो तो आपको अपनी बात इंग्लिश में ही रखनी होगी.
विभिन्न राज्यों से आने वाले हजारों लोगों को इंग्लिश नहीं आती है. ऐसे में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का अंग्रेजी आदेश व फैसला समझ में नहीं आता है, जबकि कई मामलों के फैसले बेहद गंभीर होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगाई ने शुक्रवार को पत्रकारों के साथ मीटिंग में बताया कि वह इस बात पर विचार कर रहे हैं सुप्रीम कोर्ट जजमेंट को अब अंग्रेजी से हिंदी में ट्रांसलेट किया जाएगा. इसके बाद इसे क्षेत्रीय भाषाओं में भी करने की कोशिश होगी. उन्होंने कहा कि इसके अलावा मुवक्किल की प्रादेशिक भाषा में भी फैसले का अनुवाद किए जाने पर विचार हो रहा है.सीजेआई ने कहा कि 500 पन्नों जैसे बडे जजमेंट को संक्षिप्त करके एक या दो पन्नों में करेंगे ताकि आम लोगों को समझ में आ जाए.
सुप्रीम कोर्ट के थिंक टैंक के सवाल सीजेआई ने कहा, 'एक थिंक टैंक बनाने की कोशिश कर रहे है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजमेंट को हिंदी में भी ट्रांसलेट किया जा सके. ताकि आम लोग भी कोर्ट के फैसले को समझ सके. इतना ही नहीं हम इसपर भी काम कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के बड़े बड़े फैसलों को कैसे संक्षिप्त करके लोगों तक पहुंचाया जा सके.
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