भारतीय सेना की ताकत में और इजाफा हो गया है। महाराष्ट्र के दवलाली में शुक्रवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में सेना को एम-777 होवित्जर तोप और के-9 वज्र तोप सौंपी गईं। इससे भारतीय सेना की आर्टिलरी क्षमता बढ़ेगी. इस मौके पर सेना प्रमुख विपिन रावत भी मौजूद रहे।
एम-777 होवित्जर तोप की मारक क्षमता 40-50 किलोमीटर है। इसे हेलिकॉप्टर या प्लेन के जरिए आवश्यकता अनुसार जगह पर ले जाया जा सकता है। थल सेना M777 होवित्जर की सात रेजिमेंट बनाने जा रही है। इसका वजन केवल 4.2 टन है। इसलिए इसे चीनूक हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट विमान से हाई एल्टीटयूट और दूसरे दुर्गम पहाड़ी एरिया में तैनात किया जा सकता है। कारगिल युद्ध के बाद सबसे ज्यादा कमी हाई एल्टीट्यूट वारफेयर की थी। यह तोप 31 किमी तक एक मिनट में चार राउंड फायर कर सकती है। इसका गोला 45 किलो का है। यह 155/39 एमएम की तोप है। इसे चलाने के लिए आठ जवान तैनात होंगे। इस समय 52 कैलिबर की M777 तोप का इस्तेमाल अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया कर रहे हैं और अब भारत की सेना भी करेगी। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक सेना को इन तोपों की आपूर्ति अगस्त 2019 से शुरू हो जाएगी और यह पूरी प्रक्रिया 24 महीने में पूरी होगी। प्रथम रेजिमेंट अगले साल अक्टूबर तक पूरी होगी।
वही के-9, 28 से 38 किलोमीटर तक की रेंज में सटीक निशाना साध सकती है। यह 30 सेकंड में तीन गोले दागने में सक्षम है। तीन मिनट में यह तोप 15 गोले दाग सकती है। 40 K9 वज्र तोपें नवंबर 2019 में और बाकी 50 तोपों की आपूर्ति नवंबर 2020 में की जाएगी। K9 वज्र की प्रथम रेजिमेंट जुलाई 2019 तक पूरी होने की उम्मीद है। न्यूक्लियर वारफेयर केमिकल से निपटने के लिए सीबीआरएन तकनीक से यह तोप लैस है। यह बख्तरबंद तोप 60 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौड़ सकती है। इसे रेगिस्तानी इलाकों में भी चलाया जा सकता है। इस वजह से यह तोप भारत पाक की राजस्थान और पंजाब सीमा पर बहुत प्रभावी होगी। इसका गोला जहां भी गिरेगा वहां 50 मीटर तक सब कुछ तहस-नहस कर देगा। यह तोप दिन और रात में कभी भी फायर करने में सक्षम है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है।
करगिल युद्ध के समय भी काफी ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए ज्यादा दमदार तोपों की जरूरत महसूस की गई थी। करीब 3 दशक पहले भारतीय सेना को बोफोर्स जैसी तोप मिली थी. जिसने सेना की ताकत बढ़ाई थी| इस मीडियम तोप को आसानी से दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भी तैनात किया जा सकता है। 2006 से इसे लेकर बातचीत चल रही थी और पिछले तीन साल के अंदर इसे मुकाम तक पहुंचाया गया।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और आर्मी चीफ बिपिन रावत की मौजूदगी में इसे सेना में शामिल किया गया। पाकिस्तान और चीन की चुनौती को देखते हुए होवित्जर तोपों का सेना में शामिल होना काफी अहम माना जा रहा है।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने बताया कि K9 वज्र को 4,366 करोड़ रुपये की लागत से शामिल किया गया है। यह कार्य नवंबर 2020 तक पूरा होगा। कुल 100 तोपों में से 10 तोपों की पहली खेप की आपूर्ति इस महीने की जाएगी।
एम-777 होवित्जर तोप की मारक क्षमता 40-50 किलोमीटर है। इसे हेलिकॉप्टर या प्लेन के जरिए आवश्यकता अनुसार जगह पर ले जाया जा सकता है। थल सेना M777 होवित्जर की सात रेजिमेंट बनाने जा रही है। इसका वजन केवल 4.2 टन है। इसलिए इसे चीनूक हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट विमान से हाई एल्टीटयूट और दूसरे दुर्गम पहाड़ी एरिया में तैनात किया जा सकता है। कारगिल युद्ध के बाद सबसे ज्यादा कमी हाई एल्टीट्यूट वारफेयर की थी। यह तोप 31 किमी तक एक मिनट में चार राउंड फायर कर सकती है। इसका गोला 45 किलो का है। यह 155/39 एमएम की तोप है। इसे चलाने के लिए आठ जवान तैनात होंगे। इस समय 52 कैलिबर की M777 तोप का इस्तेमाल अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया कर रहे हैं और अब भारत की सेना भी करेगी। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक सेना को इन तोपों की आपूर्ति अगस्त 2019 से शुरू हो जाएगी और यह पूरी प्रक्रिया 24 महीने में पूरी होगी। प्रथम रेजिमेंट अगले साल अक्टूबर तक पूरी होगी।
वही के-9, 28 से 38 किलोमीटर तक की रेंज में सटीक निशाना साध सकती है। यह 30 सेकंड में तीन गोले दागने में सक्षम है। तीन मिनट में यह तोप 15 गोले दाग सकती है। 40 K9 वज्र तोपें नवंबर 2019 में और बाकी 50 तोपों की आपूर्ति नवंबर 2020 में की जाएगी। K9 वज्र की प्रथम रेजिमेंट जुलाई 2019 तक पूरी होने की उम्मीद है। न्यूक्लियर वारफेयर केमिकल से निपटने के लिए सीबीआरएन तकनीक से यह तोप लैस है। यह बख्तरबंद तोप 60 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से दौड़ सकती है। इसे रेगिस्तानी इलाकों में भी चलाया जा सकता है। इस वजह से यह तोप भारत पाक की राजस्थान और पंजाब सीमा पर बहुत प्रभावी होगी। इसका गोला जहां भी गिरेगा वहां 50 मीटर तक सब कुछ तहस-नहस कर देगा। यह तोप दिन और रात में कभी भी फायर करने में सक्षम है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है।
करगिल युद्ध के समय भी काफी ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए ज्यादा दमदार तोपों की जरूरत महसूस की गई थी। करीब 3 दशक पहले भारतीय सेना को बोफोर्स जैसी तोप मिली थी. जिसने सेना की ताकत बढ़ाई थी| इस मीडियम तोप को आसानी से दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भी तैनात किया जा सकता है। 2006 से इसे लेकर बातचीत चल रही थी और पिछले तीन साल के अंदर इसे मुकाम तक पहुंचाया गया।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और आर्मी चीफ बिपिन रावत की मौजूदगी में इसे सेना में शामिल किया गया। पाकिस्तान और चीन की चुनौती को देखते हुए होवित्जर तोपों का सेना में शामिल होना काफी अहम माना जा रहा है।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने बताया कि K9 वज्र को 4,366 करोड़ रुपये की लागत से शामिल किया गया है। यह कार्य नवंबर 2020 तक पूरा होगा। कुल 100 तोपों में से 10 तोपों की पहली खेप की आपूर्ति इस महीने की जाएगी।
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