इंदिरा गांधी को भारत की आयरन लेडी के नाम से भी जाना जाता है, जवाहर लाल नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी ने जब भारत की कमान संभाली तो बड़े बड़े नेताओं को भौचक्का कर दिया, अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना किया और हर मोर्चे पर कामयाबी का परचम लहराया।
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था, उनका पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी था, उन्होंने शुरुआती तालीम इलाहाबाद के स्कूल में ही ली, इसके बाद उन्होंने गुरु रबींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया। कहते हैं, रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही उन्हें ’प्रियदर्शिनी’ नाम दिया था।
31 अक्टूबर 1984 की सुबह इंदिरा गांधी एक अकबर रोड को जोडने वाले विकेट गेट पर पहुंची तो वो धवन से बात कर रही थीं, धवन उन्हें बता रहे थे कि उन्होंने उनके निर्देशानुसार, यमन के दौरे पर गए राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को संदेश भिजवा दिया है कि वो सात बजे तक दिल्ली लैंड कर जाएं ताकि उनको पालम हवाई अड्डे पर रिसीव करने के बाद इंदिरा, ब्रिटेन की राजकुमारी एन को दिए जाने वाले भोज में शामिल हो सकें।
अचानक वहां तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर किया, गोली उनके पेट में लगी, इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फायर किए,ये गोलियां उनकी बगल, सीने और कमर में घुस गईं, वहां से पांच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ खड़ा था।
इंदिरा गांधी को गिरते हुए देख वो इतनी दहशत में आ गया कि अपनी जगह से हिला तक नहीं, तभी बेअंत ने उसे चिल्लाकर कहा गोली चलाओ, सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी पच्चीस गोलियां इंदिरा गांधी के शरीर के अंदर डाल दीं
बेअंत सिंह का पहला फायर हुए पच्चीस सेकेंड बीत चुके थे और वहां तैनात सुरक्षा बलों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी, अभी सतवंत फायर कर ही रहा था कि सबसे पहले सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौड़ना शुरू किया, लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते कि सतवंत की चलाई गोलियां उनकी जांघ और पैर में लगीं और वो वहीं ढेर हो गए।
इंदिरा गांधी के सहायकों ने उनके क्षत-विक्षत शरीर को देखा और एक दूसरे को आदेश देने लगे, एक अकबर
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था, उनका पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी था, उन्होंने शुरुआती तालीम इलाहाबाद के स्कूल में ही ली, इसके बाद उन्होंने गुरु रबींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया। कहते हैं, रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही उन्हें ’प्रियदर्शिनी’ नाम दिया था।
31 अक्टूबर 1984 की सुबह इंदिरा गांधी एक अकबर रोड को जोडने वाले विकेट गेट पर पहुंची तो वो धवन से बात कर रही थीं, धवन उन्हें बता रहे थे कि उन्होंने उनके निर्देशानुसार, यमन के दौरे पर गए राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को संदेश भिजवा दिया है कि वो सात बजे तक दिल्ली लैंड कर जाएं ताकि उनको पालम हवाई अड्डे पर रिसीव करने के बाद इंदिरा, ब्रिटेन की राजकुमारी एन को दिए जाने वाले भोज में शामिल हो सकें।
अचानक वहां तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर किया, गोली उनके पेट में लगी, इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फायर किए,ये गोलियां उनकी बगल, सीने और कमर में घुस गईं, वहां से पांच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ खड़ा था।
इंदिरा गांधी को गिरते हुए देख वो इतनी दहशत में आ गया कि अपनी जगह से हिला तक नहीं, तभी बेअंत ने उसे चिल्लाकर कहा गोली चलाओ, सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी पच्चीस गोलियां इंदिरा गांधी के शरीर के अंदर डाल दीं
बेअंत सिंह का पहला फायर हुए पच्चीस सेकेंड बीत चुके थे और वहां तैनात सुरक्षा बलों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी, अभी सतवंत फायर कर ही रहा था कि सबसे पहले सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौड़ना शुरू किया, लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते कि सतवंत की चलाई गोलियां उनकी जांघ और पैर में लगीं और वो वहीं ढेर हो गए।
इंदिरा गांधी के सहायकों ने उनके क्षत-विक्षत शरीर को देखा और एक दूसरे को आदेश देने लगे, एक अकबर
रोड से एक पुलिस अफसर दिनेश कुमार भट्ट ये देखने के लिए बाहर आए कि ये कैसा शोर मच रहा है, उसी समय बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दोनों ने अपने हथियार नीचे डाल दिए।
बेअंत सिंह ने कहा, “हमें जो कुछ करना था हमने कर दिया, अब तुम्हें जो कुछ करना हो तुम करो,” तभी नारायण सिंह ने आगे कूदकर बेअंत सिंह को जमीन पर पटक दिया, पास के गार्ड रूम से आईटीबीपी के जवान दौड़ते हुए आए और उन्होंने सतवंत सिंह को भी अपने घेरे में ले लिया।
वहां हर समय एक एंबुलेंस खड़ी रहती थी, लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर वहां से नदारद था, इतने में इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने के लिए कहा, जैसे ही कार चलने लगी सोनिया गांधी नंगे पांव, अपने ड्रेसिंग गाउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए भागती हुई आईं।
इंदिरा गांधी की हालत देखकर वो उसी हाल में कार की पीछे की सीट पर बैठ गईं, उन्होंने खून से लथपथ इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में ले लिया, कार बहुत तेजी से एम्स की तरफ बढ़ी, कार नौ बजकर 32 मिनट पर एम्स पहुंची।
वहां इंदिरा के रक्त ग्रुप ओ आरएच निगेटिव का पर्याप्त स्टॉक था, लेकिन एक सफदरजंग रोड से किसी ने भी एम्स को फोन कर नहीं बताया था कि इंदिरा गांधी को गंभीर रूप से घायल अवस्था में वहां लाया जा रहा है।
एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम में इंदिरा के दिल की मामूली गतिविधि दिखाई दे रही थीं लेकिन नाड़ी में कोई धड़कन नहीं मिल रही थी, उनकी आंखों की पुतलियां फैली हुई थीं, जो संकेत था कि उनके दिमाग को क्षति पहुंची है, एक डॉक्टर ने उनके मुंह के जरिए उनकी सांस की नली में एक ट्यूब घुसाई ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग को जिंदा रखा जा सके।
इंदिरा को 80 बोतल खून चढ़ाया गया जो उनके शरीर की सामान्य खून मात्रा का पांच गुना था, उसके बाद हमने इसकी पुष्टि के लिए ईसीजी किया, फिर मैंने वहां मौजूद स्वास्थ्य मंत्री शंकरानंद से पूछा कि अब क्या करना है? क्या हम उन्हें मृत घोषित कर दें? उन्होंने कहा नहीं।
फिर हम उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले गए, डॉक्टरों ने देखा कि गोलियों ने उनके लीवर के दाहिने हिस्से को छलनी कर दिया था, उनकी बड़ी आंत में कम से कम बारह छेद हो गए थे और छोटी आंत को भी काफी क्षति पहुंची थी, उनके एक फेफड़े में भी गोली लगी थी और रीढ़ की हड्डी भी गोलियों के असर से टूट गई थी।
सिर्फ उनका हृदय सही सलामत था, अपने अंगरक्षकों द्वारा गोली मारे जाने के लगभग चार घंटे बाद दो बजकर
बेअंत सिंह ने कहा, “हमें जो कुछ करना था हमने कर दिया, अब तुम्हें जो कुछ करना हो तुम करो,” तभी नारायण सिंह ने आगे कूदकर बेअंत सिंह को जमीन पर पटक दिया, पास के गार्ड रूम से आईटीबीपी के जवान दौड़ते हुए आए और उन्होंने सतवंत सिंह को भी अपने घेरे में ले लिया।
वहां हर समय एक एंबुलेंस खड़ी रहती थी, लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर वहां से नदारद था, इतने में इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने के लिए कहा, जैसे ही कार चलने लगी सोनिया गांधी नंगे पांव, अपने ड्रेसिंग गाउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए भागती हुई आईं।
इंदिरा गांधी की हालत देखकर वो उसी हाल में कार की पीछे की सीट पर बैठ गईं, उन्होंने खून से लथपथ इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में ले लिया, कार बहुत तेजी से एम्स की तरफ बढ़ी, कार नौ बजकर 32 मिनट पर एम्स पहुंची।
वहां इंदिरा के रक्त ग्रुप ओ आरएच निगेटिव का पर्याप्त स्टॉक था, लेकिन एक सफदरजंग रोड से किसी ने भी एम्स को फोन कर नहीं बताया था कि इंदिरा गांधी को गंभीर रूप से घायल अवस्था में वहां लाया जा रहा है।
एलेक्ट्रोकार्डियाग्राम में इंदिरा के दिल की मामूली गतिविधि दिखाई दे रही थीं लेकिन नाड़ी में कोई धड़कन नहीं मिल रही थी, उनकी आंखों की पुतलियां फैली हुई थीं, जो संकेत था कि उनके दिमाग को क्षति पहुंची है, एक डॉक्टर ने उनके मुंह के जरिए उनकी सांस की नली में एक ट्यूब घुसाई ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग को जिंदा रखा जा सके।
इंदिरा को 80 बोतल खून चढ़ाया गया जो उनके शरीर की सामान्य खून मात्रा का पांच गुना था, उसके बाद हमने इसकी पुष्टि के लिए ईसीजी किया, फिर मैंने वहां मौजूद स्वास्थ्य मंत्री शंकरानंद से पूछा कि अब क्या करना है? क्या हम उन्हें मृत घोषित कर दें? उन्होंने कहा नहीं।
फिर हम उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले गए, डॉक्टरों ने देखा कि गोलियों ने उनके लीवर के दाहिने हिस्से को छलनी कर दिया था, उनकी बड़ी आंत में कम से कम बारह छेद हो गए थे और छोटी आंत को भी काफी क्षति पहुंची थी, उनके एक फेफड़े में भी गोली लगी थी और रीढ़ की हड्डी भी गोलियों के असर से टूट गई थी।
सिर्फ उनका हृदय सही सलामत था, अपने अंगरक्षकों द्वारा गोली मारे जाने के लगभग चार घंटे बाद दो बजकर
23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया, लेकिन सरकारी प्रचार माध्यमों ने इसकी घोषणा शाम छह बजे तक नहीं की।
इससे पहले 30 अक्टूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने चुनावी भाषण दिया, इंदिरा गांधी बोलीं “मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं, मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं, मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है, मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।
भारत रत्न से सम्मानित इंदिरा गांधी ने कहा था- जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो, शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती, वो महज़ शुरुआत है,अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूं, जैसा कि कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड़यंत्र कर रहे हैं, तो मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं।
इससे पहले 30 अक्टूबर 1984 की दोपहर इंदिरा गांधी ने चुनावी भाषण दिया, इंदिरा गांधी बोलीं “मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं, मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं, मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है, मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।
भारत रत्न से सम्मानित इंदिरा गांधी ने कहा था- जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो, शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती, वो महज़ शुरुआत है,अगर मैं एक हिंसक मौत मरती हूं, जैसा कि कुछ लोग डर रहे हैं और कुछ षड़यंत्र कर रहे हैं, तो मुझे पता है कि हिंसा हत्यारों के विचार और कर्म में होगी, मेरे मरने में नहीं।
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