राजस्थान के बाड़मेर जिले के बालोतरा में स्थित मेवानगर में श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ स्थित है।
श्री नाकोडा अधियक भैरव देव जी की स्थापना विक्रम संवत 1502 में आचार्य श्री किर्तिरत्न सूरि जी ने नाकोडा पार्श्वनाथ प्रभु की प्रति के समय की थी, अत्यंत मनमोहक पीले पाषाण की महान विलक्षण प्रतिमा स्थापित है, जिसे श्री नाकोडा भैरव कहा जाता है।
मेवानगर अब नाकोड़ाजी के नाम से विख्यात हो गया है, मान्यता है कि यहां स्थापित भैरूजी की चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है, भैरूजी की स्थापना शताब्दियों पूर्व जैनाचार्य कीर्ति रत्न सुरीजी ने अनेक तप और साधना के बाद की थी।
इस तीर्थस्थल पर भगवान श्री पाश्र्वनाथ, भगवान ऋषभदेव तथा भगवान शांतिनाथजी की प्रतिमा भी स्थापित है, जैन संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली कलाकृतियां देखने लायक है।
भारत में रामायण और महाभारत काल तक तीर्थ स्थलों की प्राप्ति हो चुकी थी, इन दो महाकाव्यों में तीर्थ शब्द का अनेक बार उल्लेख आया है, नाकोडा तीर्थ स्थल प्रमुख दो कारणों से विख्यात है।
पहला कारण
श्वेताम्बर जैन समाज के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दसवीं शताब्दी की प्राचीनतम मूर्ति का मिलना और पांच सौ छह सौ वर्षो पूर्व उस चमत्कारी मूर्ति का जिनालय में स्थापित होना।
मुख्य मंदिर की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चूंकि सिन्दरी के पास नाकोडा ग्राम से आई थी, अतः यह तीर्थ नाकोडा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दूसरा कारण
तीर्थ के देव श्री भैरव देव की स्थापना पार्श्वनाथ मंदिर के परिसर में होना है, जिनके देवी चमत्कारों के कारण हज़ारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोडा भैरव के दर्शन करने यहाँ आते है और मनवांछित फल पाते हैं।
श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान श्री नेमिनाथ जी के समयकाल से जुड़ता है, इसकी प्राचीनता विक्रम संवत 200-300 वर्ष पूर्व यानि 2000-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है।
श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थो में से एक है, जो 2000 वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं मेवानगर की ऐतिहासिक सम्रद्ध, संस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठ प्रतीक है।
मेवानगर के पूर्व में विरामपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था, विरामसेन ने विरामपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोडा नगर बसाया था, बालोतरा- सीणधरी हाईवे पर नाकोडा ग्राम लूनी नदी के तट पर बसा हुआ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूल नायक भगवन की इस प्रतिमा की पुनः प्रति तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री किर्ति रत्न सुरिजी द्वारा विक्रम संवत 1090 व 1205 का उल्लेख है।
तीर्थ के अधिनायक देव श्री भैरव देव की मूल मंदिर में अत्यंत चमत्कारी प्रतिमा है, जिसके प्रभाव से देश के कोने कोने से लाखों यात्री प्रतिवर्ष यहाँ दर्शनार्थ आकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते है।
यह तीर्थ जोधपुर से 116 किमी तथा बालोतरा से 12 किमी (उत्तरी रेलवे स्टेशन) जोधपुर बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है, तीर्थ स्थान प्राय: सभी केंद्र स्थानों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।
मंदिर के खुलने का समय
गर्मी (चैत्र सुदी एकम से कार्तिक वदी अमावस तक)
प्रातः : 5:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक
सर्दी (कार्तिक सुदी एकम से चैत्र वदी अमावस तक)
प्रातः : 6 :30 बजे से रात्रि 09:00 बजे तक
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