पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने सोमवार को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री इमरान खान को एक पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने पाकिस्तान से अफगान शांति वार्ता में मदद मांगी है। अफगानिस्तान में पिछले 17 वर्षो से सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच संघर्ष चल रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति इस संघर्ष को खत्म कराना चाहते हैं। इसी प्रयास में अमेरिकी अधिकारी पाकिस्तान पर लंबे समय से दबाव बना रहे हैं कि वह तालिबान नेतृत्व को बातचीत की टेबल पर लाने में मदद करे।
चौधरी ने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप ने पत्र में तालिबान को बातचीत की टेबल पर लाने में पाकिस्तान से सहयोग करने को कहा है। उन्होंने इमरान खान से कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध अफगान संघर्ष का हल खोजने के लिहाज से बेहद महत्वूपर्ण हैं।' चौधरी का यह बयान आतंकवाद के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के सख्त रुख के बीच आया है। ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि अरबों डॉलर की मदद लेने के बावजूद पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ नहीं किया। उसने आतंकियों पर कोई कार्रवाई नहीं की।
दरअसल, तालिबान देश से अंतरराष्ट्रीय सेना को बाहर करने और अपने हिसाब से सख्त इस्लामिक कानून लागू करने के लिए लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिकी अधिकारी लंबे समय से तालिबान लीडरशिप को वार्ता की टेबल पर लाने के लिए पाकिस्तान से अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का दबाव बना रहे हैं। वॉशिंगटन का कहना है कि पाकिस्तान में तालिबान का बड़ा आधार है।
पिछले महीने ट्रंप ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अरबों डॉलर की अमेरिकी मदद मिलने के बाद भी पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तानी अधिकारियों को पता था कि अल कायदा का पूर्व सरगना ओसामा बिन लादेन उनके यहां एबटाबाद में छिपा बैठा है। बाद में 2011 में एक ऑपरेशन में अमेरिकी कमांडोज ने पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मार गिराया था।
इस बीच, पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि तालिबान के साथ शांति समझौते के लिए उन्होंने टीम बनाई है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी डील को लागू करने में कम से कम 5 साल का वक्त लगेगा।
चौधरी ने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप ने पत्र में तालिबान को बातचीत की टेबल पर लाने में पाकिस्तान से सहयोग करने को कहा है। उन्होंने इमरान खान से कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध अफगान संघर्ष का हल खोजने के लिहाज से बेहद महत्वूपर्ण हैं।' चौधरी का यह बयान आतंकवाद के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के सख्त रुख के बीच आया है। ट्रंप ने हाल ही में कहा था कि अरबों डॉलर की मदद लेने के बावजूद पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ नहीं किया। उसने आतंकियों पर कोई कार्रवाई नहीं की।
दरअसल, तालिबान देश से अंतरराष्ट्रीय सेना को बाहर करने और अपने हिसाब से सख्त इस्लामिक कानून लागू करने के लिए लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिकी अधिकारी लंबे समय से तालिबान लीडरशिप को वार्ता की टेबल पर लाने के लिए पाकिस्तान से अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का दबाव बना रहे हैं। वॉशिंगटन का कहना है कि पाकिस्तान में तालिबान का बड़ा आधार है।
पिछले महीने ट्रंप ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अरबों डॉलर की अमेरिकी मदद मिलने के बाद भी पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तानी अधिकारियों को पता था कि अल कायदा का पूर्व सरगना ओसामा बिन लादेन उनके यहां एबटाबाद में छिपा बैठा है। बाद में 2011 में एक ऑपरेशन में अमेरिकी कमांडोज ने पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मार गिराया था।
इस बीच, पिछले हफ्ते अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि तालिबान के साथ शांति समझौते के लिए उन्होंने टीम बनाई है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी डील को लागू करने में कम से कम 5 साल का वक्त लगेगा।
0 comments:
Post a comment