भारत की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन 18 का पहला ट्रायल सफल रहा है. ट्रायल के दौरान ट्रेन -18, 180 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की स्पीड से दौड़ी और इस तरह यह देश की सबसे तेज दौड़ने वाली ट्रेन बन गई है. इस ट्रेन की अधिकतम स्पीड 220 किमी प्रति घंटे तक की हो सकती है. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने खुद ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. ट्रायल के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्विटर पर ट्रेन-18 का एक वीडियो भी शेयर किया है। ट्रेन के इतनी रफ्तार में होने के बाद भी झटके नहीं लग रहे हैं। वीडियो में पानी की बोतलों को दिखाया गया है, जो कि स्थिर हैं। रेल मंत्री ने लिखा, ‘जोर की स्पीड का झटका धीरे से लगा।’
यह ट्रेन मौजूदा शताब्दी एक्प्रेस की जगह लेगी और मुसाफिरों को ट्रेन यात्रा का एक नया अनुभव देगी. भारतीय रेलवे की 30 साल पुरानी शताब्दी एक्सप्रेस का स्थान लेने वाली ‘ट्रेन 18' 29 अक्टूबर को पहली बार परीक्षण के लिए पटरियों पर उतरी थी.
बिना ईंजन वाली यह ट्रेन पूरी तरह से भारत में बनी है. बाक़ी ट्रेनों की तरह इसके न तो डब्बे बदले जाते हैं और न ही इसमें ईंजन लगा होता है. एक ट्रेन के सारे कंपोनेंट्स मिलकर यह एक सेट की तरह चलता है. इसलिए इसे ट्रेन सेट के नाम से जाना जाता है| चेन्नई के इंटिग्रल कोच फैक्ट्री ने इसे तैयार किया है और साल 2018 में बनने के कारण इसे टी-18 नाम दिया गया है. इस ट्रेन की पूरी बॉडी ख़ास एल्यूमिनियम की बनी है यानी यह ट्रेन वज़न में हल्की भी होगी. इसे तुरंत ही ब्रेक लगाकर रोकना आसान है और इसके तुरंत ही तेज़ गति भी दी जा सकती है. इस ट्रेन में अलग से इंजन नहीं है, बल्कि कोच में ही इंजन के हिस्से होंगे. इस ट्रेन में सेफ्टी का खास ख्याल रखा गया है. इसके कोच इस तरह तैयार किए गए हैं कि किसी दुर्घटना की स्थिति में भी एक कोच, दूसरे में घुसेंगे नहीं. इसमें बेहतर फायर प्रोटेक्शन सिस्टम भी लगाया गया है. वातानुकूलित ट्रेन ‘सेल्फ प्रपल्शन मॉड्यूल’ से चलेगी. ट्रेन की पांच और इकाइयों का निर्माण वर्ष 2019-20 के अंत तक आईसीएफ द्वारा किया जाना है.
पहली बार भारतीय रेलवे ने इतनी स्पीड पर ट्रेन चलाई है. आने वाले दिनों में और ट्रायल किए जाएंगे. ट्रेन ने परीक्षण को दौरान रविवार को जब 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति को पार किया तो ट्रेन में लड्डू बांटे गए और सबसे पहले लड्डू लोको पायलट पद्म सिंह गुर्जर और उनके सहयोगी ओंकार यादव को दिया गया. पद्म सिंह ने आईएएनएस को बताया, "हम इस महान अवसर का हिस्सा बनने पर रोमांचित हैं." यादव ने कहा, "मुझे इस ऐतिहासिक परीक्षण का हिस्सा बनने पर गर्व है." ट्रेन की दिशा से मेल खाने के लिए घुमावदार सीटों पर बैठे लोगों के लिए यह एक सहज यात्रा थी.
ट्रेन की परीक्षण यात्रा कोटा से सुबह 9.30 बजे शुरू हुई और कई नदियों, पुलों और मोड़ों को पार करने के बाद शाम छह बजे जंक्शन पर लौट आई. अब ट्रेनसेट को लंबे समय तक इसकी यात्रा करने की क्षमता की पुष्टि करने वाली जांच से गुजरना है और वाणिज्यिक संचालन के लिए आयुक्त, रेलवे सुरक्षा (सीआरएस) से मंजूरी मिलने से पहले इसकी आपातकालीन ब्रेकिंग दूरी का परीक्षण भी होना है.
यह ट्रेन मौजूदा शताब्दी एक्प्रेस की जगह लेगी और मुसाफिरों को ट्रेन यात्रा का एक नया अनुभव देगी. भारतीय रेलवे की 30 साल पुरानी शताब्दी एक्सप्रेस का स्थान लेने वाली ‘ट्रेन 18' 29 अक्टूबर को पहली बार परीक्षण के लिए पटरियों पर उतरी थी.
बिना ईंजन वाली यह ट्रेन पूरी तरह से भारत में बनी है. बाक़ी ट्रेनों की तरह इसके न तो डब्बे बदले जाते हैं और न ही इसमें ईंजन लगा होता है. एक ट्रेन के सारे कंपोनेंट्स मिलकर यह एक सेट की तरह चलता है. इसलिए इसे ट्रेन सेट के नाम से जाना जाता है| चेन्नई के इंटिग्रल कोच फैक्ट्री ने इसे तैयार किया है और साल 2018 में बनने के कारण इसे टी-18 नाम दिया गया है. इस ट्रेन की पूरी बॉडी ख़ास एल्यूमिनियम की बनी है यानी यह ट्रेन वज़न में हल्की भी होगी. इसे तुरंत ही ब्रेक लगाकर रोकना आसान है और इसके तुरंत ही तेज़ गति भी दी जा सकती है. इस ट्रेन में अलग से इंजन नहीं है, बल्कि कोच में ही इंजन के हिस्से होंगे. इस ट्रेन में सेफ्टी का खास ख्याल रखा गया है. इसके कोच इस तरह तैयार किए गए हैं कि किसी दुर्घटना की स्थिति में भी एक कोच, दूसरे में घुसेंगे नहीं. इसमें बेहतर फायर प्रोटेक्शन सिस्टम भी लगाया गया है. वातानुकूलित ट्रेन ‘सेल्फ प्रपल्शन मॉड्यूल’ से चलेगी. ट्रेन की पांच और इकाइयों का निर्माण वर्ष 2019-20 के अंत तक आईसीएफ द्वारा किया जाना है.
पहली बार भारतीय रेलवे ने इतनी स्पीड पर ट्रेन चलाई है. आने वाले दिनों में और ट्रायल किए जाएंगे. ट्रेन ने परीक्षण को दौरान रविवार को जब 180 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति को पार किया तो ट्रेन में लड्डू बांटे गए और सबसे पहले लड्डू लोको पायलट पद्म सिंह गुर्जर और उनके सहयोगी ओंकार यादव को दिया गया. पद्म सिंह ने आईएएनएस को बताया, "हम इस महान अवसर का हिस्सा बनने पर रोमांचित हैं." यादव ने कहा, "मुझे इस ऐतिहासिक परीक्षण का हिस्सा बनने पर गर्व है." ट्रेन की दिशा से मेल खाने के लिए घुमावदार सीटों पर बैठे लोगों के लिए यह एक सहज यात्रा थी.
ट्रेन की परीक्षण यात्रा कोटा से सुबह 9.30 बजे शुरू हुई और कई नदियों, पुलों और मोड़ों को पार करने के बाद शाम छह बजे जंक्शन पर लौट आई. अब ट्रेनसेट को लंबे समय तक इसकी यात्रा करने की क्षमता की पुष्टि करने वाली जांच से गुजरना है और वाणिज्यिक संचालन के लिए आयुक्त, रेलवे सुरक्षा (सीआरएस) से मंजूरी मिलने से पहले इसकी आपातकालीन ब्रेकिंग दूरी का परीक्षण भी होना है.
0 comments:
Post a comment