आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है, आजीवन देश की आजादी के लिए लड़ने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की देश आजाद होने के कुछ दिनों बाद ही हत्या कर दी गर्इ थी।
30 जनवरी 1948 की शाम एक कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी समर्थक नाथूराम गोडसे ने गांधी जी पर ताबड़तोड गोलियां बरसा कर उन्हें मौत की नींद सुला दी थी।
हत्या वाले दिन गांधी जी नई दिल्ली के बिड़ला हाउस के लॉन में प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए पहुंचे थे, उस दिन उन्हें कुछ मिनट की देरी हुई थी।
30 जनवरी मार्ग पर 12 कमरों का घर घनश्याम दास बिड़ला ने 1928 में बनवाया था, जहां सरदार पटेल और महात्मा गांधी अक्सर आया जाया करते थे, यहां आकर महात्मा गांधी का काफी सुकून मिलता था, महात्मा गांधी जब चलने फिरने में थोड़े असमर्थ हो गए तो वो यहीं रहने लगे, बापू यहां 9 सितंबर 1947 ले लेकर 30 जनवरी 1948 तक रहे
जब वह सभा में पहुंचे तो एक खाकी जैकेट और नीली पैंट पहने पांच फीट का आदमी बापू के सामने खड़ा था, उस शख्स ने गांधी जी के सामने सम्मान देने की अवस्था में हाथ जोड़कर झुक गया तो गांधी जी उसको देखते हुए मुस्कुराए।
इसके बाद देखते ही देखते उस शख्स ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और तीन बार उससे फायर किया, गोलियां गांधी के सीने, पेट और कमर में लगीं और वह वहीं पर गिर गए, जिससे उन्हें तुरंत बिड़ला हाउस में ले जाया गया लेकिन करीब आधे घंटे बाद शाम को 5.40 पर उनकी मृत्यु हो गई।
78 वर्षीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले शख्स का नाम नाथूराम गोडसे था, इसके बाद वहां पर भीड़ ने गोडसे को जमकर पीटा और बाद में पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया।
नाथूराम गोडसे ने पुलिस स्टेशन में पत्रकारों के सवालों का जवाब अंग्रेजी में देते हुए कहा था कि उसे बिल्कुल भी अपने किए पर अफसोस नही है, उसने यह भी कहा कि अब वह इस मामले में अपनी बात अदालत में रखेगा।
वहीं महात्मा गांधी जी की हत्या की खबर सुनते ही पूरा देश गम में डूब गया था, गांधी जी की हत्या की खबर का असर देश ही नहीं दुनिया भर में पड़ा था, अमेरिका के राष्ट्रपति समेत कई देशों की और से बापू जी के निधन पर दुख जताया गया था। गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
लेकिन गांधी की हत्या में संघ की संलिप्तता का कोई प्रमाण न मिलने पर छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गुरु जी रिहा कर दिए गए थे, और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने संघ को क्लीनचिट देते हुए 11 जुलाई 1949 को उस पर लगे प्रतिबंध को उठाने की घोषणा की थी।
क़रीब डेढ़ साल हुई जांच पड़ताल के बाद सरदार पटेल ने भी माना था कि गांधी जी की हत्या में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं, क्योंकि नाथूराम गोडसे ने हत्या का आरोप अकेले अपने ऊपर ले लिया था।
गोली लगने के बाद महात्मा गांधी को घायल अवस्था में किसी अस्पताल नहीं ले जाया गया, बल्कि उन्हें वहीं घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और उनका शव उनके आवास बिरला हाऊस में रखा गया।
जबकि क़ानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है, और उसमें उसे गोली लगती है, तब सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और वहां मौजूद डॉक्टर ही बॉडी का परिक्षण करने के बाद उसे ‘ऑन एडमिशन’ या ‘आफ्टर एडमिशन’ मृत घोषित करते हैं।
गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे ने अपने इकबालिया बयान में साफ़-साफ़ कहा था कि गांधी की हत्या केवल उसने (गोडसे ने) ही की है, इसमें कोई न तो शामिल है और न ही कोई साज़िश रची गई।
गांधी की हत्या के बाद नाथूराम को पहले दिन तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा गया था, उस समय गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी, गोडसे से मिलने गए थे।
देवदास को लगा था कि किसी सिरफिरे आचरण वाले व्यक्ति ने उनके पिता की हत्या की होगी, लेकिन जैसे ही वह हवालात के बाहर पहुंचे गोडसे ने ही उऩ्हें पहचान लिया।
नाथूराम ने इकबालिया बयान में स्वीकार किया था कि गांधी की हत्या केवल उन्होंने ही की है, नाथूराम ने बाद में दूसरे आरोपी अपने छोटे भाई गोपाल गोडसे को बताया, “शुक्रवार शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के द्वार पर पहुंच गया।
मैं चार-पांच लोगों के झुंड के साथ रक्षक को झांसा देकर अंदर जाने में कामयाब रहा, वहां मैं भीड़ में अपने को छिपाए रहा, ताकि किसी को मुझे पर शक न हो, 5.10 बजे मैंने गांधीजी को अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाते हुए देखा।
गांधीजी दो लड़कियों के कंधे पर हाथ रखे चले आ रहे थे, जब गांधी मेरे क़रीब पहुंचे तब मैंने जेब में हाथ डालकर सेफ्टीकैच खोल दिया, अब मुझे केवल तीन सेकेंड का समय चाहिए था।
मैंने पहले गांधीजी का उनके महान् कार्यों के लिए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और दोनों लड़कियों को उनसे अलग करके फायर कर दिया, मैं दो गोली चलाने वाला था लेकिन तीन चल गई और गांधीजी ‘आह’ कहते हुए वहीं गिर पड़े, गांधीजी ने ‘हे राम’ उच्चरण नहीं किया था।”
नाथूराम ने गोपाल को आगे बताया, “मेरे हाथ में पिस्तौल थी, उसमें अभी भी चार गोलियां थीं, मैं और गोली नहीं दागूंगा, यह भरोसा किसी को नहीं था।
सभी लोग गांधी को छोड़कर दूर भाग गए, मैंने जब समर्पण की मुद्रा में हाथ ऊपर किए तब भी मेरे क़रीब आगे की हिम्मत किसी की नहीं पड़ रही थी।
पुलिसवाले की की भी नहीं, मैं ख़ुद पुलिस पुलिस चिल्लाया, पांच छह मिनट बाद एक व्यक्ति को भरोसा हो गया कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा और वह मेरे पास आया, इसके बाद सब मेरे पास पहुंचे और मुझ पर छड़ी और हाथ से प्रहार भी किए।”
जब मुझे तुगलक रोड थाने ले जाया गया तो नाथूराम ने फ़ौरन डॉक्टर बुलाकर अपनी जांच कराने की इच्छा जताई।
डॉक्टर के आते ही उन्होंने कहा, “डॉक्टर, मेरे शरीर का परीक्षा किजिए, मेरा हृदय, मेरी नाड़ी व्यवस्थित है या नहीं यह देखकर बताइए।” डॉक्टर ने जांच करके कहा कि आप पूरी तरह फिट हैं।
तब नाथूराम ने कहा, “ऐसा मैंने इसलिए करवाया क्योंकि गांधी जी की हत्या मैंने अपने होशोहवास में की है, सरकार मुझे विक्षिप्त घोषित न कर दे, इसलिए मैं चाहता था, डॉक्टर मुझे पूरी तरह फिट घोषित करे।”
गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी मिली थी।
इसके बाद देखते ही देखते उस शख्स ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और तीन बार उससे फायर किया, गोलियां गांधी के सीने, पेट और कमर में लगीं और वह वहीं पर गिर गए, जिससे उन्हें तुरंत बिड़ला हाउस में ले जाया गया लेकिन करीब आधे घंटे बाद शाम को 5.40 पर उनकी मृत्यु हो गई।
78 वर्षीय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले शख्स का नाम नाथूराम गोडसे था, इसके बाद वहां पर भीड़ ने गोडसे को जमकर पीटा और बाद में पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया।
नाथूराम गोडसे ने पुलिस स्टेशन में पत्रकारों के सवालों का जवाब अंग्रेजी में देते हुए कहा था कि उसे बिल्कुल भी अपने किए पर अफसोस नही है, उसने यह भी कहा कि अब वह इस मामले में अपनी बात अदालत में रखेगा।
वहीं महात्मा गांधी जी की हत्या की खबर सुनते ही पूरा देश गम में डूब गया था, गांधी जी की हत्या की खबर का असर देश ही नहीं दुनिया भर में पड़ा था, अमेरिका के राष्ट्रपति समेत कई देशों की और से बापू जी के निधन पर दुख जताया गया था। गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
लेकिन गांधी की हत्या में संघ की संलिप्तता का कोई प्रमाण न मिलने पर छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गुरु जी रिहा कर दिए गए थे, और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने संघ को क्लीनचिट देते हुए 11 जुलाई 1949 को उस पर लगे प्रतिबंध को उठाने की घोषणा की थी।
क़रीब डेढ़ साल हुई जांच पड़ताल के बाद सरदार पटेल ने भी माना था कि गांधी जी की हत्या में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं, क्योंकि नाथूराम गोडसे ने हत्या का आरोप अकेले अपने ऊपर ले लिया था।
गोली लगने के बाद महात्मा गांधी को घायल अवस्था में किसी अस्पताल नहीं ले जाया गया, बल्कि उन्हें वहीं घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और उनका शव उनके आवास बिरला हाऊस में रखा गया।
जबकि क़ानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है, और उसमें उसे गोली लगती है, तब सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और वहां मौजूद डॉक्टर ही बॉडी का परिक्षण करने के बाद उसे ‘ऑन एडमिशन’ या ‘आफ्टर एडमिशन’ मृत घोषित करते हैं।
गांधी की हत्या के बाद नाथूराम को पहले दिन तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा गया था, उस समय गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी, गोडसे से मिलने गए थे।
देवदास को लगा था कि किसी सिरफिरे आचरण वाले व्यक्ति ने उनके पिता की हत्या की होगी, लेकिन जैसे ही वह हवालात के बाहर पहुंचे गोडसे ने ही उऩ्हें पहचान लिया।
नाथूराम ने इकबालिया बयान में स्वीकार किया था कि गांधी की हत्या केवल उन्होंने ही की है, नाथूराम ने बाद में दूसरे आरोपी अपने छोटे भाई गोपाल गोडसे को बताया, “शुक्रवार शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के द्वार पर पहुंच गया।
मैं चार-पांच लोगों के झुंड के साथ रक्षक को झांसा देकर अंदर जाने में कामयाब रहा, वहां मैं भीड़ में अपने को छिपाए रहा, ताकि किसी को मुझे पर शक न हो, 5.10 बजे मैंने गांधीजी को अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाते हुए देखा।
गांधीजी दो लड़कियों के कंधे पर हाथ रखे चले आ रहे थे, जब गांधी मेरे क़रीब पहुंचे तब मैंने जेब में हाथ डालकर सेफ्टीकैच खोल दिया, अब मुझे केवल तीन सेकेंड का समय चाहिए था।
मैंने पहले गांधीजी का उनके महान् कार्यों के लिए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और दोनों लड़कियों को उनसे अलग करके फायर कर दिया, मैं दो गोली चलाने वाला था लेकिन तीन चल गई और गांधीजी ‘आह’ कहते हुए वहीं गिर पड़े, गांधीजी ने ‘हे राम’ उच्चरण नहीं किया था।”
नाथूराम ने गोपाल को आगे बताया, “मेरे हाथ में पिस्तौल थी, उसमें अभी भी चार गोलियां थीं, मैं और गोली नहीं दागूंगा, यह भरोसा किसी को नहीं था।
सभी लोग गांधी को छोड़कर दूर भाग गए, मैंने जब समर्पण की मुद्रा में हाथ ऊपर किए तब भी मेरे क़रीब आगे की हिम्मत किसी की नहीं पड़ रही थी।
पुलिसवाले की की भी नहीं, मैं ख़ुद पुलिस पुलिस चिल्लाया, पांच छह मिनट बाद एक व्यक्ति को भरोसा हो गया कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा और वह मेरे पास आया, इसके बाद सब मेरे पास पहुंचे और मुझ पर छड़ी और हाथ से प्रहार भी किए।”
जब मुझे तुगलक रोड थाने ले जाया गया तो नाथूराम ने फ़ौरन डॉक्टर बुलाकर अपनी जांच कराने की इच्छा जताई।
डॉक्टर के आते ही उन्होंने कहा, “डॉक्टर, मेरे शरीर का परीक्षा किजिए, मेरा हृदय, मेरी नाड़ी व्यवस्थित है या नहीं यह देखकर बताइए।” डॉक्टर ने जांच करके कहा कि आप पूरी तरह फिट हैं।
तब नाथूराम ने कहा, “ऐसा मैंने इसलिए करवाया क्योंकि गांधी जी की हत्या मैंने अपने होशोहवास में की है, सरकार मुझे विक्षिप्त घोषित न कर दे, इसलिए मैं चाहता था, डॉक्टर मुझे पूरी तरह फिट घोषित करे।”
गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर, 1949 को फांसी मिली थी।
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