जयपुर। मेरी नजर में उर्दू-हिंदी से बिलकुल भी अलग नहीं है, क्योंकि इस भाषा का असली नाम हिंदुस्तानी है, वैसे भी भारतीय सिनेमा में हिंदी-उर्दू का फर्क मिट जाता है। इसलिए यह झगड़ा खत्म कीजिए और आने वाली नस्लों के बारे में सोचिए।यह कहना है मशहूर गीतकार गुलजार का।
उन्होंने कहा कि आज की सियासत में जिस तरीके की जुबान का इस्तेमाल हो रहा है। उससे साफ जाहिर होता है कि यह अगली पीढ़ी की जुबान खराब कर देगी। गुलजार ने बड़े अफसोस के साथ कहा कि सियासत करने वालों को इस बारे में काफी गौर करना चाहिए।
गुलजार जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'जिया जले: स्टोरीज बिहाइंड द् सॉन्ग’ पर नसरीन और संजोय के.रॉय के साथ अपनी गुफ्तगू कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने हिंदी की प्रख्यात साहित्यकार कृष्णा सोबती को अपने शब्दों के जरिए भाव-भीनी श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि बहते दरिया में जब बुलबुले आते हैं तो वह वक्त के साथ-साथ बह जाते है। जिंदगी की रौनकें, सफर और बहाव चलता रहता है।
हम कृष्णा सोबती जी को हमेशा याद रखेंगे, उनके लेखन में, उनकी किताबों में और हमारी यादों में। क्योंकि महान साहित्य और साहित्यकार हमेशा जिंदा रहते हैं।
हर गीत की अपनी कहानी
गुलजार ने कहा कि फिल्मों में कहानियों पर गीत लिखे जाते हैं, यह तो सब जानते हैं, लेकिन हर फिल्मी गीत के पीछे एक कहानी छिपी होती है, जिसे सिर्फ गीतकार ही जानता है। नसरीन की किताब 'जिया जले स्टोरिज बिहाइंड द् सॉन्ग’ में इस गाने 'जिया जले’ की बनने की प्रकिया और इसमें छिपी कहानी को बयां किया। गुलजार ने कहा कि नसरीन भले ही यूके में रहती हंै, लेकिन हिंदी फिल्मों के बारे में इतना अधिक जानती है कि यदि खुद नसरीन को प्रोजेक्ट पर चला दो तो आप सिनेमा के बारे में सबकुछ जान जाएंगे।
फिल्मी गीतों की एक सीमा
फिल्मी गीत आम गीतों से बिलकुल अलग होते हैं। इस पर गुलजार ने कहा कि सामान्य गीत या कविता आप के अंदर की अभिव्यक्ति होती है, जबकि फिल्मी गीत फिल्म की कहानी और कैरेक्टर पर आधारित होते हैं। यहां सिचुएशन का बड़ा महत्व होता है। फिल्मी गीत एक तरह से कैरेक्टर का स्ट्ेटमेंट होता है ना कि गीतकार का। अधिकांश गीत कैरेक्टर की जुबान को शामिल किया जाता है। गुलजार का कहना था कि फिल्मी गीतों की एक सीमा यह भी होती है कि वह एक बनी बनाई धुन पर लिखे जाते हैं।
रहमान ने दिलाई सिनेमा को नई पहचान
जय हो गाने की सफलता का जिक्र करते हुए गुलजार का कहना था कि यह गीत ए.आर.रहमान की कमाल की मधुर धुन और गायक सुखविंदर सिंह की दमदार आवाज का परिणाम है। उन्होंने कहा कि ए.आर.रहमान ने हिंदी सिनेमा को नहीं ऊंचाईयां दी है। रहमान ने हिंदी सिनेमा के संगीत का फोरमेंट ही बदलकर रख दिया है।
लता जी के सामने बैठना पड़ा
'दीया जले गाने’ के लिए पहली बार स्वर कोकिला लता मंगेशकर मुंबई से बाहर चेन्नई रिकॉर्डिंग के लिए गई। जब गाना रिकॉर्ड हो रहा था तो लताजी ने कहा कि सामने तो कोई नहीं है। एसे में मैं कैसे गाऊं? तब मुझे लता जी के सामने बैठना पड़ा, जिसके बाद ही दिया जले गाना मुकम्मल हुआ।
अपने नाम से लिखें
एक सवाल के जवाब में वॉट्सएप पर गुलजार के नाम से आनी वाली कविताओं के बारे में गुलजार ने कहा कि इनमें से एक भी मेरी नहीं हैं। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उन्हें अपने नाम से लिखने की हिम्मत दिखानी चाहिए।
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