उन्हें जाने जिन्होंने भारत को महान भारत बनाया
महात्मा ज्योतिबा फुले
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले 11 अप्रैल 1827 में पुणे, महाराष्ट्र, भारत जन्में। वे एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे।
ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं क्लास की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं।
सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए।
समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1851 में एक स्कूल खोला। स्त्रियों के लिए यह देश का पहला विद्यालय था।
लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया।
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी।
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी।
ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे।
उनकी सीख :
बिना शिक्षा बुद्धि नष्ट हो जाती है। बिना बुद्धि नैतिकता नष्ट हो जाती है। बिना नैतिकता विकास नहीं | विकास नहीं तो धन भी नहीं| देखिए – शिक्षा बिना कितना कुछ नष्ट हो जाता है।
उस समय दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने उनको पढ़ना शुरू किया था। विरोध इतना बढ़ा कि दोनों को घर छोड़ना पड़ा।
Jyotirao Govindrao Phule was a writer, thinker, activist and social reformer from India
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सत्येन्द्रनाथ बोस – आधुनिक भारत के असली हीरो
post business listing – INDIA
Follow us: Facebook
Follow us: Twitter
Google Plus
महात्मा ज्योतिबा फुले
महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले 11 अप्रैल 1827 में पुणे, महाराष्ट्र, भारत जन्में। वे एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे।
ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं क्लास की पढाई पूरी की। इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्वयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं।
सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए।
समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।
स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1851 में एक स्कूल खोला। स्त्रियों के लिए यह देश का पहला विद्यालय था।
लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया।
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी।
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी।
ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे।
उनकी सीख :
बिना शिक्षा बुद्धि नष्ट हो जाती है। बिना बुद्धि नैतिकता नष्ट हो जाती है। बिना नैतिकता विकास नहीं | विकास नहीं तो धन भी नहीं| देखिए – शिक्षा बिना कितना कुछ नष्ट हो जाता है।
उस समय दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने उनको पढ़ना शुरू किया था। विरोध इतना बढ़ा कि दोनों को घर छोड़ना पड़ा।
Jyotirao Govindrao Phule was a writer, thinker, activist and social reformer from India
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सत्येन्द्रनाथ बोस – आधुनिक भारत के असली हीरो
सत्येन्द्रनाथ बोस (1 जनवरी 1894 - 4 फ़रवरी 1974) भारतीय गणितज्ञ और भौतिक शास्त्री हैं।
भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं - बोसान और फर्मियान। इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही हैं।
सत्येन्द्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को कोलकाता में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भरती कराया गया।
स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा।
उनकी प्रतिभा देखकर कहा जाता था कि वह एक दिन पियरे साइमन, लेप्लास और आगस्टीन लुई काउथी जैसे गणितज्ञ बनेंगे।
सत्येन्द्रनाथ बोस ने सन् 1918 में गणित में एम.एस.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया। उन दिनों भौतिक विज्ञान में नई-नई खोजें हो रही थीं।
जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्स प्लांक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उसका अर्थ यह था कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा जा सकता है।
जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने "सापेक्षता का सिद्धांत" प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की।
उन्होंने एक लेख लिखा
"प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम" इसे भारत में किसी पत्रिका ने नहीं छापा तो सत्येन्द्रनाथ ने उसे सीधे आइंस्टीन को भेज दिया।
उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में स्वयं किया और प्रकाशित करा दिया। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत प्रसिद्धि मिली। उन्होंने यूरोप यात्रा के दौरान आइंस्टीन से मुलाकात भी की थी।
1926 में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और ढाका विश्वविद्यालय में 1950 तक काम किया। फिर शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनका निधन 4 फ़रवरी 1974 को हुआ। अपने वैज्ञानिक योगदान के लिए वह सदा याद किए जाएँगे।
Satyendra Nath Bose - What he done
1920 में आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत का जर्मन से इंग्लिश भाषा में अनुवाद करने वाले पहले वैज्ञानिक
उनकी सीख :
आधुनिकता को अपनाओ। जहां देश में सब पारम्परिक भौतिकी रहे थे। इन्होने भौतिकी के आधुनिक परिवर्तन को समझा।
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सैयद अहमद ख़ाँ - महान शिक्षक और नेता
सैयद अहमद ख़ाँ का जन्म 17 अक्टूबर 1817 दिल्ली के सैयद ख़ानदान में हुआ था।
22 वर्ष की उम्र में पिता की मृत्यु के बाद परिवार को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा और थोड़ी सी शिक्षा के बाद ही उन्हें रोज़ी-रोटी कमाने में लगना पड़ा।
उन्होने 1830 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क के पद पर काम करना शुरू किया, किंतु 1841 ई. में मैनपुरी में उप-न्यायाधीश की योग्यता हासिल की और विभिन्न स्थानों पर न्यायिक विभागों में काम किया।
हालांकि सबसे ऊंचा पद पर होने के बावज़ूद अपनी सारी ज़िन्दगी उन्होने फटेहाल गुज़ारी।
वे भारतीय शिक्षक और नेता थे जिन्होंने भारत के मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा की शुरुआत की। उन्होने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएण्टल कालेज की स्थापना की जो बाद में विकसित होकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।
उनकी कोशिशों से अलीगढ़ क्रांति की शुरुआत हुई, जिसमें शामिल मुस्लिम बुद्धिजीवियों और नेताओं ने भारतीय मुसलमानों का राजनैतिक भविष्य मजबूत किया।
1857 की महाक्रान्ति और उसकी असफलता के दुष्प्रभाव उन्होंने अपनी आँखों से देखे। अपने परिवार की बर्बादी को देखकर उनका मन विचलित हो गया और उनके दिलो-दिमाग़ में राष्ट्रभक्ति की लहर करवटें लेने लगीं।
उनकी दूरदृष्टि अंग्रेज़ों की कांस्पीरेसी को अच्छी तरह समझती थी। इसलिए अपने बेहतरीन लेखों के माध्यम से समाज में शिक्षा व संस्कृति की भावना जगाने की कोशिश की ताकि शैक्षिक क्षेत्र में कोई हमारे भारतीय समाज पर हावी न हो ।
सर सैयद अहमद खान ने भविष्य को सबसे बेहतर तरीके से समझा था वे कहते थे – अंग्रेजो से मुकाबला करना है तो अंग्रेजी सीखनी ही होगी, उनका उस जमाने में विरोध किया जाता था, पत्थर तक फेंके जाते थे ।
1860 के दशक के अंतिम वर्षों का घटनाक्रम उनकी गतिविधियों का रुख़ बदलने वाला सिद्ध हुआ। उन्हें 1867 में हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं के केंद्र, गंगा तट पर स्थित बनारस (वर्तमान वाराणसी) में स्थानांतरिक कर दिया गया।
मुस्लिम राजनीति में सर सैयद की परंपरा मुस्लिम लीग (1906 में स्थापित) के रूप में उभरी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885 में स्थापित) के विरूध्द उनका प्रोपेगंडा था कि कांग्रेस हिन्दू आधिपत्य पार्टी है और प्रोपेगंडा आज़ाद-पूर्व भारत के मुस्लिमों में जीवित रहा।
हमारे इस महान शिक्षक और नेता का निधन 27 मार्च 1898 को दिल के दौरे से हुआ ।
उनकी सीख :
पुरानी और बेकार परम्पराओं को छोड़ो, वे मानव विकास में रूकावट पहुचती हैं ।
Syed Ahmad bin Muttaqi Khan CSI, commonly known as Sir Syed, was an Indian Muslim pragmatist, Islamic modernist, philosopher, and social activist of nineteenth-century India
दैनिक चमकता राजस्थान
Dainik Chamakta Rajasthan paper and e-paper Publishing from Jaipur Rajasthan
सम्बन्धित खबरें पढने के लिए यहाँ देखे
See More Related Newspost business listing – INDIA
Follow us: Facebook
Follow us: Twitter
Google Plus
0 comments:
Post a comment