आइये सीखें बोलने की कला
वर्तमान युग में कार्य से लेकर जीवन और रोजगार के क्षेत्र में संवाद कौशल का महत्व बढ़ता जा रहा है, मौखिक और लिखित संचार और संवाद के साथ किसी संस्थान में काम करने तथा संस्था के हितों को प्रगतिगामी बनाने पर ही उसकी सफलता निर्भर करती है।
लेकिन, यह अफ़सोस की बात भी है कि बोलने की कला और अभिव्यक्ति के तौर तरीकों पर इतना जोर दिए जाने के बावजूद बहुत लोग हैं जिनके लिए यह काम पहाड़ जैसा है।
बोलना एक कला है, इस कला में माहिर होने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं, यह भी सही है कि कई लोगों को बोलने में जन्मजात महारत हासिल होती है।
प्रतिभाशाली और मेहनती लोगों के मन में प्रभावी बातचीत या भाषण की कला न होने से हीन भावना आ जाती है और उनकी तरक्की की राह में बाधा बन जाती है तो बेहद दु:ख होता है।
अफसोस इस बात का है कि लाखों लोग इस कमी की वजह से मन में निराशा और कुंठा पाले बैठे हैं और अपने भविष्य के साथ अन्याय कर रहे हैं।
मन में आए विचारों को दूसरे तक पहुंचाने का माध्यम शब्द हैं,ऐसा नहीं है कि मन में जो-जो बातें आती हैं, हम उन सबको बोलते जाते हैं।
उसके लिए बुद्धि तय करती है कि क्या बोलना है और क्या नहीं, किसी पागल व्यक्ति और हमारे बीच बस इतना ही अंतर होता है कि हम सोच कर बोलते हैं, जबकि वह मन में आ रही हर बात बोलता है, क्योंकि उसकी बुद्धि निष्क्रिय हो गई है।
जब हम बोलते हैं तो हमारे शब्द हमारे मन की अवस्था पर हमारी पकड़ को बता देते हैं, यही वाणी व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाती है।
व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो पर बोलने की कला न जानता हो, या अपनी बात को ठीक प्रकार से पेश न कर पाता हो तो आज के समय में उसका अपने क्षेत्र में आगे बढ़ना मुश्किल सा हो जाता है।
क्योंकि वाणी हमेशा दूसरे के लिए होती है और वही हमारी बात न समझ पाए तो इसका मतलब है कि हमें बोलने की कला नहीं आती।
आइये सीखें बोलने की कला
हर भाषा के बोलने का अपना-अपना तरीका होता है, जैसे इंग्लिश जल्दी-जल्दी बोली जाती है और हिंदी धीरे-धीरे बोली जाती है।
यदि हम इंग्लिश को धीरे और हिंदी को जल्दी बोलने लगें, तो भाषा अपने मूल सिद्धांत से थोड़ा हट जाती है, जिससे उसका प्रभाव सामने वाले व्यक्ति पर कम पड़ता है।
कई लोग मन में जल्दी-जल्दी सोच लेने के कारण सुनने वाले को बात समझ में नहीं आती, लेकिन बोलने वाले को लगता है कि उसने अपनी बात समझा दी है।
कई बार व्यक्ति के शब्द की ध्वनि इतनी कम होती है कि सामने वाला सुन ही नहीं पाता, जिस तरह से लिखने में कोमा, पूर्ण विराम आदि का ध्यान रखा जाता है, उसी प्रकार बोलने में भी यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो बोलने की कला में निखार आता है।
हर शब्द अपने आप में महत्वपूर्ण होता है, इसलिए बोलते समय हर शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार से होना चाहिए, बोलते समय हमारे वाक्य पूरे होने चाहिए, जिस व्यक्ति से हम बात कर रहे हैं , उसके मानसिक स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिए।
हम जब बोलें तो हमारी बातों में वजन हो और वह सामने वाले को उसकी मानसिक अवस्था से ऊपर उठाने वाला हो , उसको खुश करने वाला हो , ज्ञान देने वाला हो , समस्या का निदान करने वाला हो।
जब जरूरत हो तब अवश्य बोलना चाहिए , लेकिन जब जरूरत नहीं हो या आप विषय से अनभिज्ञ हों तो नहीं बोलना चाहिए।
समूह में बोलने और दो लोगों के आपस में बोलने की शैली में थोड़ा अंतर होता है, वाणी में निखार के लिए बोलने का अभ्यास बड़ा जरूरी है।
एक नया शोध कहता है, बालक गर्भ में मां की आवाज़ के साथ-साथ आसपास हो रही बातचीत को भी सुनता है, भावनाओं को व्यक्त करते समय ध्वनियों में जो परिवर्तन वह सुनता है, उसे जन्म के बाद नकल करने की कोशिश करता है।
शिशु मां के गर्भ में बाहरी आवाज़ों को सुनता है, यह एक स्थापित तथ्य है, लेकिन उन आवाज़ों की पहचान कर वह बोलने का अभ्यास भी कर लेता है।
कोई भी अभ्यास के बिना एक कठिन काम जीत सकते हैं, कई शुरुआती दर्शकों के सामने बोलने का डर है, करने के लिए मंच भय पर काबू पाने, यह सबसे अच्छा है एक दर्पण के सामने भाषण अभ्यास, जैसा कि आप को आईने में अपने चेहरे का भाव निरीक्षण, आप शक्तिशाली मुख्य बिंदुओं पर बल द्वारा बोल सकता है।
आईने के सामने अभ्यास करने के बाद, आप अपने दोस्त के अनुरोध करने के लिए अपने भाषण सुन सकते हैं, दोस्तों के एक बहुत मदद कर रहे हैं क्योंकि वे आप शक्तिशाली अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों को उजागर करने से पार पाते हुए बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
अपने लेखन और अभ्यास भाषण की कड़ी मेहनत के लिए अपने परिणाम दिखाने के रूप में आप एक अज्ञात दर्शकों के लिए एक उत्साही, सूचनात्मक, और ऊर्जावान भाषण देने के लिए तैयार है, जब दर्शक तालियों की, तो आप अपने भाषण में एक विराम देकर विनम्रता के साथ यह स्वीकार करना चाहिए।
दर्शकों के साथ एक आँख से संपर्क करें आगे की पंक्ति में लोगों को, मध्य पंक्ति है, और अंतिम पंक्ति सहित बनाए रखनी चाहिए, इसलिए, आप शक्तिशाली क्रमिक अभ्यास,, लगन और समर्पण से बोल सकता है,बोल-चाल में शब्दों का सही चयन करें ।
महत्वपूर्ण शब्दों को चुनना होगा और महत्वहीन शब्दों को छोड़ना होगा, क्योंकि शब्द ही आपके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
दुनिया मे एक जुबान ऐसी भी है, जिसे विश्व का हर आदमी समझता है। और वह जुबान है उत्साह और उमंग की, मेहनत और कर्म की।
बोलने की आदत डालिए, क्योंकि बोलने से आत्मविश्वास पैदा होता है, लेकिन बोलने से पहले अपने शब्दों को रचनात्मक विचारों की तराजू में अवश्व तोलिए।
जब आप एक झूठ बोलते हैं तब आपको यह नहीं पता होता कि आप कितनी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं, क्योंकि एक झूठ को सच में बदलने के लिए बीस झूठ और बोलते हैं।
यदि आप एक शब्द बोलने से पहले दो बार सोच लेंगे, तब आप हमेशा अच्छा बोलेंगे।
कृपया और धन्यवाद ऐसे साधारण शिष्टाचार के शब्द हैं, जो आपको और सामने वाले को प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
लोगों के पास बात करने की कला तो होती है, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि उस बात को समाप्त कैसे किया जाए।
नपे-तुले शब्दों में, समय और ज़रुरत का ध्यान रखकर कही गई बात की अहमियत बढ़ जाती है, यदि ऐसा न हो सका तो यह भी संभव है कि आपकी बात का गलत अर्थ निकाल लिया जाये या फिर उसकी किसी अन्य सन्दर्भ में गलत व्याख्या कर दी जाये ।
इसलिए, जिन्हें अभिव्यक्ति की शक्ति का भान है वे कुछ कहने की साथ-साथ अच्छा कहे हुए को सुनने के लिए सदैव तत्पर देखे जा सकते हैं, और उनकी तो चर्चा ही व्यर्थ है जो कहने और सुनने के बदले महज़ कहा-सुनी में मशगूल होते है।
वर्तमान युग में कार्य से लेकर जीवन और रोजगार के क्षेत्र में संवाद कौशल का महत्व बढ़ता जा रहा है, मौखिक और लिखित संचार और संवाद के साथ किसी संस्थान में काम करने तथा संस्था के हितों को प्रगतिगामी बनाने पर ही उसकी सफलता निर्भर करती है।
लेकिन, यह अफ़सोस की बात भी है कि बोलने की कला और अभिव्यक्ति के तौर तरीकों पर इतना जोर दिए जाने के बावजूद बहुत लोग हैं जिनके लिए यह काम पहाड़ जैसा है।
बोलना एक कला है, इस कला में माहिर होने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं, यह भी सही है कि कई लोगों को बोलने में जन्मजात महारत हासिल होती है।
प्रतिभाशाली और मेहनती लोगों के मन में प्रभावी बातचीत या भाषण की कला न होने से हीन भावना आ जाती है और उनकी तरक्की की राह में बाधा बन जाती है तो बेहद दु:ख होता है।
अफसोस इस बात का है कि लाखों लोग इस कमी की वजह से मन में निराशा और कुंठा पाले बैठे हैं और अपने भविष्य के साथ अन्याय कर रहे हैं।
मन में आए विचारों को दूसरे तक पहुंचाने का माध्यम शब्द हैं,ऐसा नहीं है कि मन में जो-जो बातें आती हैं, हम उन सबको बोलते जाते हैं।
उसके लिए बुद्धि तय करती है कि क्या बोलना है और क्या नहीं, किसी पागल व्यक्ति और हमारे बीच बस इतना ही अंतर होता है कि हम सोच कर बोलते हैं, जबकि वह मन में आ रही हर बात बोलता है, क्योंकि उसकी बुद्धि निष्क्रिय हो गई है।
जब हम बोलते हैं तो हमारे शब्द हमारे मन की अवस्था पर हमारी पकड़ को बता देते हैं, यही वाणी व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाती है।
व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान हो पर बोलने की कला न जानता हो, या अपनी बात को ठीक प्रकार से पेश न कर पाता हो तो आज के समय में उसका अपने क्षेत्र में आगे बढ़ना मुश्किल सा हो जाता है।
क्योंकि वाणी हमेशा दूसरे के लिए होती है और वही हमारी बात न समझ पाए तो इसका मतलब है कि हमें बोलने की कला नहीं आती।
आइये सीखें बोलने की कला
हर भाषा के बोलने का अपना-अपना तरीका होता है, जैसे इंग्लिश जल्दी-जल्दी बोली जाती है और हिंदी धीरे-धीरे बोली जाती है।
यदि हम इंग्लिश को धीरे और हिंदी को जल्दी बोलने लगें, तो भाषा अपने मूल सिद्धांत से थोड़ा हट जाती है, जिससे उसका प्रभाव सामने वाले व्यक्ति पर कम पड़ता है।
कई लोग मन में जल्दी-जल्दी सोच लेने के कारण सुनने वाले को बात समझ में नहीं आती, लेकिन बोलने वाले को लगता है कि उसने अपनी बात समझा दी है।
कई बार व्यक्ति के शब्द की ध्वनि इतनी कम होती है कि सामने वाला सुन ही नहीं पाता, जिस तरह से लिखने में कोमा, पूर्ण विराम आदि का ध्यान रखा जाता है, उसी प्रकार बोलने में भी यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो बोलने की कला में निखार आता है।
हर शब्द अपने आप में महत्वपूर्ण होता है, इसलिए बोलते समय हर शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार से होना चाहिए, बोलते समय हमारे वाक्य पूरे होने चाहिए, जिस व्यक्ति से हम बात कर रहे हैं , उसके मानसिक स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिए।
हम जब बोलें तो हमारी बातों में वजन हो और वह सामने वाले को उसकी मानसिक अवस्था से ऊपर उठाने वाला हो , उसको खुश करने वाला हो , ज्ञान देने वाला हो , समस्या का निदान करने वाला हो।
जब जरूरत हो तब अवश्य बोलना चाहिए , लेकिन जब जरूरत नहीं हो या आप विषय से अनभिज्ञ हों तो नहीं बोलना चाहिए।
समूह में बोलने और दो लोगों के आपस में बोलने की शैली में थोड़ा अंतर होता है, वाणी में निखार के लिए बोलने का अभ्यास बड़ा जरूरी है।
एक नया शोध कहता है, बालक गर्भ में मां की आवाज़ के साथ-साथ आसपास हो रही बातचीत को भी सुनता है, भावनाओं को व्यक्त करते समय ध्वनियों में जो परिवर्तन वह सुनता है, उसे जन्म के बाद नकल करने की कोशिश करता है।
शिशु मां के गर्भ में बाहरी आवाज़ों को सुनता है, यह एक स्थापित तथ्य है, लेकिन उन आवाज़ों की पहचान कर वह बोलने का अभ्यास भी कर लेता है।
कोई भी अभ्यास के बिना एक कठिन काम जीत सकते हैं, कई शुरुआती दर्शकों के सामने बोलने का डर है, करने के लिए मंच भय पर काबू पाने, यह सबसे अच्छा है एक दर्पण के सामने भाषण अभ्यास, जैसा कि आप को आईने में अपने चेहरे का भाव निरीक्षण, आप शक्तिशाली मुख्य बिंदुओं पर बल द्वारा बोल सकता है।
आईने के सामने अभ्यास करने के बाद, आप अपने दोस्त के अनुरोध करने के लिए अपने भाषण सुन सकते हैं, दोस्तों के एक बहुत मदद कर रहे हैं क्योंकि वे आप शक्तिशाली अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों को उजागर करने से पार पाते हुए बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
अपने लेखन और अभ्यास भाषण की कड़ी मेहनत के लिए अपने परिणाम दिखाने के रूप में आप एक अज्ञात दर्शकों के लिए एक उत्साही, सूचनात्मक, और ऊर्जावान भाषण देने के लिए तैयार है, जब दर्शक तालियों की, तो आप अपने भाषण में एक विराम देकर विनम्रता के साथ यह स्वीकार करना चाहिए।
दर्शकों के साथ एक आँख से संपर्क करें आगे की पंक्ति में लोगों को, मध्य पंक्ति है, और अंतिम पंक्ति सहित बनाए रखनी चाहिए, इसलिए, आप शक्तिशाली क्रमिक अभ्यास,, लगन और समर्पण से बोल सकता है,बोल-चाल में शब्दों का सही चयन करें ।
महत्वपूर्ण शब्दों को चुनना होगा और महत्वहीन शब्दों को छोड़ना होगा, क्योंकि शब्द ही आपके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं।
दुनिया मे एक जुबान ऐसी भी है, जिसे विश्व का हर आदमी समझता है। और वह जुबान है उत्साह और उमंग की, मेहनत और कर्म की।
बोलने की आदत डालिए, क्योंकि बोलने से आत्मविश्वास पैदा होता है, लेकिन बोलने से पहले अपने शब्दों को रचनात्मक विचारों की तराजू में अवश्व तोलिए।
जब आप एक झूठ बोलते हैं तब आपको यह नहीं पता होता कि आप कितनी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं, क्योंकि एक झूठ को सच में बदलने के लिए बीस झूठ और बोलते हैं।
यदि आप एक शब्द बोलने से पहले दो बार सोच लेंगे, तब आप हमेशा अच्छा बोलेंगे।
कृपया और धन्यवाद ऐसे साधारण शिष्टाचार के शब्द हैं, जो आपको और सामने वाले को प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
लोगों के पास बात करने की कला तो होती है, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि उस बात को समाप्त कैसे किया जाए।
नपे-तुले शब्दों में, समय और ज़रुरत का ध्यान रखकर कही गई बात की अहमियत बढ़ जाती है, यदि ऐसा न हो सका तो यह भी संभव है कि आपकी बात का गलत अर्थ निकाल लिया जाये या फिर उसकी किसी अन्य सन्दर्भ में गलत व्याख्या कर दी जाये ।
इसलिए, जिन्हें अभिव्यक्ति की शक्ति का भान है वे कुछ कहने की साथ-साथ अच्छा कहे हुए को सुनने के लिए सदैव तत्पर देखे जा सकते हैं, और उनकी तो चर्चा ही व्यर्थ है जो कहने और सुनने के बदले महज़ कहा-सुनी में मशगूल होते है।
दैनिक चमकता राजस्थान
Dainik Chamakta Rajasthan e-paper and Daily Newspaper, Publishing from Jaipur Rajasthan
सम्बन्धित खबरें पढने के लिए यहाँ देखे
0 comments:
Post a comment