क्या राहुल गांधी की जीत का अंतर कम कर पाएंगी स्मृति ईरानी
अमेठी में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की अच्छे अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने पूरी ताकत झोंक रही है। यहां समस्या 2014 आम चुनाव में तब शुरू हुई, जब भाजपा ने अमेठी में राहुल के विरुद्ध स्मृति ईरानी को उतारा।
नई उम्मीदवार ने तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष को अच्छी चुनौती दी और 2009 में उनके जीत के 3.7 लाख अंतर को घटाकर केवल एक लाख मतों तक ला दिया।
जिसके बाद वे राहुल की जीत के अंतर को बरकरार रखने के लिए तेजी से काम में जुट गए, इसके बाद सूक्ष्म स्तरीय योजना के तहत ‘पूर्वा’ यानी गांवस्तर तक टीमों को भेजा गया और ऑनलाइन ऐप शक्ति के जरिए लगातार निगरानी रखी गई।
शक्ति ऐसा ऑनलाइन मंच है जिसके जरिए देशभर में बूथ स्तरीय समूहों के प्रदर्शन को ट्रैक किया जाता है, अमेठी में पार्टी समन्वयकों ने एक विशेष प्रयास भी किया है, जहां राहुल को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया है।
पार्टी की प्रणाली को दुरुस्त करने के अलावा, कार्यकर्ताओं से जीत का अंतर पांच लाख वोट सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है ।
क्या राहुल गांधी की जीत का अंतर कम कर पाएंगी स्मृति ईरानी
सूत्रों का कहना है कि तथाकथित प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के प्रभावशाली नेताओं की भी इस कार्य में मदद ली जा रही है।
2014 में हार के बावजूद अपने प्रदर्शन से उत्साहित ईरानी तबसे लगातार अमेठी का दौरा कर रही हैं और इस प्रतिष्ठित सीट पर कब्जा जमाने के लिए काफी मेहनत कर रही हैं जहां कई उन्हें अभी भी ‘बाहरी’ की तरह मानते हैं।
सपा-बसपा गठबंधन ने आम चुनाव में कांग्रेस से किनारा कर लिया है, लेकिन अखिलेश यादव की पार्टी सपा का 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन था और दोनों पार्टियों में जुड़ाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी की सपा व बसपा के स्थानीय नेताओं से राहुल को समर्थन देने के लिए कई बार बातचीत हुई है।
उन्होनें साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं से लक्ष्य के लिए एकजुट होकर काम करने की अपील की।
राहुल ने 2009 में बसपा के आशीष शुक्ला को 3.7 लाख मतों से हराया था, इसकी तुलना में 2014 में ईरानी को तीन लाख मत मिले थे ।
राहुल गांधी को 4.08 लाख मत मिले थे, सूत्रों ने कहा कि यह अंतर और कम हो सकता है, जो कांग्रेस पार्टी में चिंता का सबब बना हुआ है।
दैनिक चमकता राजस्थान
सूत्रों का कहना है कि तथाकथित प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के प्रभावशाली नेताओं की भी इस कार्य में मदद ली जा रही है।
2014 में हार के बावजूद अपने प्रदर्शन से उत्साहित ईरानी तबसे लगातार अमेठी का दौरा कर रही हैं और इस प्रतिष्ठित सीट पर कब्जा जमाने के लिए काफी मेहनत कर रही हैं जहां कई उन्हें अभी भी ‘बाहरी’ की तरह मानते हैं।
सपा-बसपा गठबंधन ने आम चुनाव में कांग्रेस से किनारा कर लिया है, लेकिन अखिलेश यादव की पार्टी सपा का 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन था और दोनों पार्टियों में जुड़ाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी की सपा व बसपा के स्थानीय नेताओं से राहुल को समर्थन देने के लिए कई बार बातचीत हुई है।
उन्होनें साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं से लक्ष्य के लिए एकजुट होकर काम करने की अपील की।
राहुल ने 2009 में बसपा के आशीष शुक्ला को 3.7 लाख मतों से हराया था, इसकी तुलना में 2014 में ईरानी को तीन लाख मत मिले थे ।
राहुल गांधी को 4.08 लाख मत मिले थे, सूत्रों ने कहा कि यह अंतर और कम हो सकता है, जो कांग्रेस पार्टी में चिंता का सबब बना हुआ है।
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