नई दिल्ली ।
अपने विलक्षण फैसलों के लिए ख्यात हो चुकी केंद्र की नरेंद्र मोदी नीत राजग सरकार ने 70 साल बाद वह ऐतिहासिक फैसला ले लिया, जिसकी सुगबुगाहट पिछले एक हफ्ते से चरमोत्कर्ष पर थी। केंद्र का यह असाधारण फैसला देश की एकता व अखंडता के लिए दूरगामी महत्व का है।
हालांकि कांग्रेस समेत कुछ दलों ने सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए लोकतंत्र का काला दिन बताया और भारी विरोध किया, लेकिन पूरे देश में सरकार के इस फैसले से जश्न का माहौल है।जम्मू-कश्मीर की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। यह करीब 70 साल से राज्य के साथ पूरे देश में विवाद का केंद्र बना हुआ था। कश्मीर भारत के साथ भी था और नहीं भी। भारत के कई कानून राज्य में लागू नहीं होते थे। अलग झंडा, अलग विधान, छह वर्षीय विधानसभा, अलग दंड संहिता जैसे तमाम प्रावधान उसे भारत के साथ आत्मसात नहीं होने दे रहे थे।
सोमवार सुबह 11:15 बजे गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में घोषणा की कि राष्ट्रपति कोविंद ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति की अधिसूचना जारी कर दी है। इसी सिलसिले में वह एक संकल्प पारित करने के लिए और मौजूदा जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांटने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश कर रहे हैं। इसके बाद विपक्ष के भारी हंगामे के बीच चर्चा शुरू हुई।
आधी रात के कदमों से तय हो गई थी फैसले की घड़ी
पिछले करीब एक हफ्ते की कवायद को लेकर देश में चर्चाएं तेज थीं कि सरकार कश्मीर को लेकर कोई बड़़ा कदम उठा रही है। रविवार रात जैसे ही कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर घाटी में धारा 144 लागू की गई और सोमवार सुबह 9.30 बजे पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक बुलाई गई, यह तय हो गया था कि अब फैसले की घड़ी आ गई है। सुबह करीब एक घंटे कैबिनेट बैठक में सारी व्यूह रचना को मंजूरी दी गई और फिर संसद के मानसून में एलान का फैसला कर लिया गया।
शाह को आते देख राज्यसभा में खड़े हो गए भाजपा सदस्य
कैबिनेट के निर्णय के बाद सोमवार सुबह करीब 11 बजे गृह मंत्री अमित शाह जब राज्यसभा में पहुंचे तो सदन में मौजूदा भाजपा सदस्यों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। माहौल में पहले ही बेचैनी व खुशी नजर आ रही थी। विपक्षी नेता जहां बेचैन थे वहीं सत्तापक्ष के खुश।
जम्मू-कश्मीर का देश के साथ एकीकरण नहीं हो रहा था : शाह
शाह ने अपना बयान शुरू करते हुए कहा-ऐतिहासिक! अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर का देश से एकीकरण नहीं होने दे रहा था, लेकिन अब यह लागू नहीं रहेगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना पर दस्तखत कर दिए हैं और अब चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा अस्तित्व में नहीं रहेगी और राज्य विधानसभा भंग हो चुकी है, इसलिए उसकी सारी शक्तियां संसद के दोनों सदनों में निहित हैं। राष्ट्रपति के आदेश पर दोनों सदनों में बहस हो सकती है।
अनुच्छेद 370 (3) में ही थे इसे हटाने के प्रावधान
शाह के बयान के बीच सदस्यों को राष्ट्रपति के आदेश की प्रतियां भी वितरित की गई। शाह ने बयान जारी रखते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को ऐसे आदेश से खत्म किया जा सकता है, ऐसे प्रावधान इसी अनुच्छेद के उपबंध 370 (3) में निहित हैं। इसके अनुसार राष्ट्रपति के आदेश से इस अनुच्छेद में संशोधन किया जा सकते हैं या इसे समाप्त किया जा सकता है।
1952 व 1962 में कांग्रेस ने किए संशोधन
गृह मंत्री शाह ने रास में कहा कि हम वही तरीका अपना रहे हैं जो 1952 व 1962 में कांग्रेस ने अपनाया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने अधिसूचना के माध्यम से ही इस अनुच्छेद में संशोधन किए थे। सपा के प्रो. राम गोपाल यादव ने इस पर शाह से पूछा था कि क्या बगैर संविधान संशोधन विधेयक लाए संविधान में संशोधन हो सकता हो सकता है? इस पर शाह ने उक्त स्पष्टीकरण दिया।
अपने विलक्षण फैसलों के लिए ख्यात हो चुकी केंद्र की नरेंद्र मोदी नीत राजग सरकार ने 70 साल बाद वह ऐतिहासिक फैसला ले लिया, जिसकी सुगबुगाहट पिछले एक हफ्ते से चरमोत्कर्ष पर थी। केंद्र का यह असाधारण फैसला देश की एकता व अखंडता के लिए दूरगामी महत्व का है।
हालांकि कांग्रेस समेत कुछ दलों ने सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए लोकतंत्र का काला दिन बताया और भारी विरोध किया, लेकिन पूरे देश में सरकार के इस फैसले से जश्न का माहौल है।जम्मू-कश्मीर की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। यह करीब 70 साल से राज्य के साथ पूरे देश में विवाद का केंद्र बना हुआ था। कश्मीर भारत के साथ भी था और नहीं भी। भारत के कई कानून राज्य में लागू नहीं होते थे। अलग झंडा, अलग विधान, छह वर्षीय विधानसभा, अलग दंड संहिता जैसे तमाम प्रावधान उसे भारत के साथ आत्मसात नहीं होने दे रहे थे।
सोमवार सुबह 11:15 बजे गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में घोषणा की कि राष्ट्रपति कोविंद ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति की अधिसूचना जारी कर दी है। इसी सिलसिले में वह एक संकल्प पारित करने के लिए और मौजूदा जम्मू-कश्मीर को दो भागों में बांटने के लिए जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश कर रहे हैं। इसके बाद विपक्ष के भारी हंगामे के बीच चर्चा शुरू हुई।
आधी रात के कदमों से तय हो गई थी फैसले की घड़ी
पिछले करीब एक हफ्ते की कवायद को लेकर देश में चर्चाएं तेज थीं कि सरकार कश्मीर को लेकर कोई बड़़ा कदम उठा रही है। रविवार रात जैसे ही कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर घाटी में धारा 144 लागू की गई और सोमवार सुबह 9.30 बजे पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक बुलाई गई, यह तय हो गया था कि अब फैसले की घड़ी आ गई है। सुबह करीब एक घंटे कैबिनेट बैठक में सारी व्यूह रचना को मंजूरी दी गई और फिर संसद के मानसून में एलान का फैसला कर लिया गया।
शाह को आते देख राज्यसभा में खड़े हो गए भाजपा सदस्य
कैबिनेट के निर्णय के बाद सोमवार सुबह करीब 11 बजे गृह मंत्री अमित शाह जब राज्यसभा में पहुंचे तो सदन में मौजूदा भाजपा सदस्यों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। माहौल में पहले ही बेचैनी व खुशी नजर आ रही थी। विपक्षी नेता जहां बेचैन थे वहीं सत्तापक्ष के खुश।
जम्मू-कश्मीर का देश के साथ एकीकरण नहीं हो रहा था : शाह
शाह ने अपना बयान शुरू करते हुए कहा-ऐतिहासिक! अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर का देश से एकीकरण नहीं होने दे रहा था, लेकिन अब यह लागू नहीं रहेगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना पर दस्तखत कर दिए हैं और अब चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा अस्तित्व में नहीं रहेगी और राज्य विधानसभा भंग हो चुकी है, इसलिए उसकी सारी शक्तियां संसद के दोनों सदनों में निहित हैं। राष्ट्रपति के आदेश पर दोनों सदनों में बहस हो सकती है।
अनुच्छेद 370 (3) में ही थे इसे हटाने के प्रावधान
शाह के बयान के बीच सदस्यों को राष्ट्रपति के आदेश की प्रतियां भी वितरित की गई। शाह ने बयान जारी रखते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को ऐसे आदेश से खत्म किया जा सकता है, ऐसे प्रावधान इसी अनुच्छेद के उपबंध 370 (3) में निहित हैं। इसके अनुसार राष्ट्रपति के आदेश से इस अनुच्छेद में संशोधन किया जा सकते हैं या इसे समाप्त किया जा सकता है।
1952 व 1962 में कांग्रेस ने किए संशोधन
गृह मंत्री शाह ने रास में कहा कि हम वही तरीका अपना रहे हैं जो 1952 व 1962 में कांग्रेस ने अपनाया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने अधिसूचना के माध्यम से ही इस अनुच्छेद में संशोधन किए थे। सपा के प्रो. राम गोपाल यादव ने इस पर शाह से पूछा था कि क्या बगैर संविधान संशोधन विधेयक लाए संविधान में संशोधन हो सकता हो सकता है? इस पर शाह ने उक्त स्पष्टीकरण दिया।
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