सरकार को आकलन
करना चाहिए कि
जम्मू-कश्मीर में
राजनयिकों के ऐसे
दौरों की आखिर
क्या उपयोगिता है?
[ विवेक काटजू ]: मोदी सरकार
ने बीते साल
पांच अगस्त को
जबसे जम्मू-कश्मीर
में संवैधानिक परिवर्तन
किए हैं तबसे
कुछ लोग उसके
खिलाफ लगातार विषवमन
में जुटे हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति
रेसेप तैयप एर्दोगन
भी उनमें से
एक हैं। बीते
शुक्रवार को एक
बार फिर इसकी
बानगी दिखी जब
पाकिस्तानी संसद के
संयुक्त सत्र को
संबोधित करते हुए
उन्होंने कश्मीर का राग
अलापा। कश्मीरी अलगाववाद की
तुलना प्रथम विश्व
युद्ध में विदेशी
प्रभुत्व के खिलाफ
तुर्की की लड़ाई
से करते हुए
एर्दोगन ने पाकिस्तान
को आश्वस्त किया
कि कश्मीर तुर्की
के लिए भी
उतना ही संवेदनशील
मसला है जितना
पाकिस्तान के लिए।
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