मिड डे मील योजना में पिछले दिनों कई जगहों पर अनियमितताएं या घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं को देखते हुए यह पूरी योजना, उसके कार्यान्वयन, निगरानी और व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर बच्चों के भविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ हो रहा है? इस योजना को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने और इसके लिए जरूरी उपक्रमों के विकास के लिए सरकार बजट में रकम क्यों नहीं बढ़ा रही है? मिड-डे-मील जैसी स्कीम चलाने का तीन सीधा उद्देश्य है जिसमें यह योजना प्रभावी रूप से खरी उतरी है। पहला सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले गरीब परिवार के बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास हो सके। आज भी देश में कई ऐसे गरीब परिवार हैं जो दो वक्त की रोटी बमुश्किल जुटा पाते हैं और इनके बच्चे भूखे पेट स्कूल आते हैं। ऐसे में सरकार इस स्कीम के माध्यम से उनके बच्चों को लाभान्वित कर चहुमुखी शारीरिक विकास के लिए प्रेरित करती है। अब सवाल उठता है कि व्यापक सुधारवादी उद्देश्य के साथ शुरू की गई इस योजना में आखिर कहां पर चूक हो रही है जिससे तमाम विसंगतियां देखने को मिल रही हैं? इस योजना में भोजन निर्माण का कार्य मुख्यत: ग्राम पंचायतों या वार्ड सभासदों की देखरेख में किया जाता है। भोजन को अध्यापक अपनी देखरेख में विद्यालय परिसर में बने किचन शेड में तैयार करवाते हैं। भोजन से संबंधित अन्य सामग्रियों की व्यवस्था ग्राम प्रधान आदि करते हैं। गोदाम से स्कूलों में खाद्यान्न पहुंचने तक बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता है। इस वजह से खाने की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी ये सामने आया है कि कम से कम नौ राज्यों के मामलों में तय पोषण नहीं पाया गया। इस योजना में बुनियादी सुविधाओं का बड़े स्तर पर अभाव है। सैकड़ों बच्चों को भोजन बनाने के लिए साफ-सुथरी किचन और बर्तन तथा उपकरणों का अभाव पाया जाता है। अनेक स्कूलों में भोजन टिन शेड में बनते हैं जिसमें साफसफाई का अभाव है। साफ-सफाई, देखभाल और सावधानी की समुचित व्यवस्था न होने से अनेक बार विषाक्त भोजन बनने और उससे बच्चों के बीमार पडऩे की घटनाएं सामने आती हैं। गुणवत्तापूर्ण भोजन और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में मुख्य रूप से इस योजना की कमी आवश्यक मात्रा में रकम का उपलब्ध न होना और जारी की गई रकम में भी भ्रष्टाचार का व्याप्त होना है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक प्राइमरी स्तर के प्रति छात्रों के खाना तैयार करने का खर्च अब 4.48 रुपये, उच्च प्राइमरी स्तर के प्रति छात्र पर खाना बनाने का खर्च 6.71 रुपये है। इतनी रकम में एक छात्र को गुणवत्तापूर्ण और पौष्टिक आहार दे पाने की उम्मीद करना बेकार है। सबसे बड़ी कमी इस योजना में निगरानी तंत्र की है। वर्तमान में कार्यक्रम की निगरानी के लिए केंद्र की निगरानी में राज्य-स्तर पर दिशा-नियंत्रक- सहनिरीक्षण समितियों का गठन किया गया है जो इसके निगरानी तंत्र में मंडल, जिले, ब्लॉक और ग्राम स्तर पर इस योजना के क्रियान्वयन और निरीक्षण का कार्य विभिन्न अधिकारियों द्वारा करवाते हैं, परंतु निगरानी तंत्र अपनी दायित्वों को भली-भांति नहीं पूरा करते। अनेक जगहों पर यह देखने को मिला है कि विद्यार्थियों की कम उपस्थिति संख्या होने के बावजूद रजिस्टर में अधिक एंट्री होती है। शहरों में हालत ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले काफी बेहतर है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में जांच, निगरानी और क्रियान्वयन बेहतर तरीके से नहीं हो पाता। इस योजना में सर्वाधिक नाकाम राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड हैं तो वहीं अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और कर्नाटक आदि राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
मिड डे मील योजना में हो सुधार
मिड डे मील योजना में पिछले दिनों कई जगहों पर अनियमितताएं या घटनाएं सामने आई हैं। इन घटनाओं को देखते हुए यह पूरी योजना, उसके कार्यान्वयन, निगरानी और व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर बच्चों के भविष्य के साथ क्यों खिलवाड़ हो रहा है? इस योजना को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने और इसके लिए जरूरी उपक्रमों के विकास के लिए सरकार बजट में रकम क्यों नहीं बढ़ा रही है? मिड-डे-मील जैसी स्कीम चलाने का तीन सीधा उद्देश्य है जिसमें यह योजना प्रभावी रूप से खरी उतरी है। पहला सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले गरीब परिवार के बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास हो सके। आज भी देश में कई ऐसे गरीब परिवार हैं जो दो वक्त की रोटी बमुश्किल जुटा पाते हैं और इनके बच्चे भूखे पेट स्कूल आते हैं। ऐसे में सरकार इस स्कीम के माध्यम से उनके बच्चों को लाभान्वित कर चहुमुखी शारीरिक विकास के लिए प्रेरित करती है। अब सवाल उठता है कि व्यापक सुधारवादी उद्देश्य के साथ शुरू की गई इस योजना में आखिर कहां पर चूक हो रही है जिससे तमाम विसंगतियां देखने को मिल रही हैं? इस योजना में भोजन निर्माण का कार्य मुख्यत: ग्राम पंचायतों या वार्ड सभासदों की देखरेख में किया जाता है। भोजन को अध्यापक अपनी देखरेख में विद्यालय परिसर में बने किचन शेड में तैयार करवाते हैं। भोजन से संबंधित अन्य सामग्रियों की व्यवस्था ग्राम प्रधान आदि करते हैं। गोदाम से स्कूलों में खाद्यान्न पहुंचने तक बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता है। इस वजह से खाने की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी ये सामने आया है कि कम से कम नौ राज्यों के मामलों में तय पोषण नहीं पाया गया। इस योजना में बुनियादी सुविधाओं का बड़े स्तर पर अभाव है। सैकड़ों बच्चों को भोजन बनाने के लिए साफ-सुथरी किचन और बर्तन तथा उपकरणों का अभाव पाया जाता है। अनेक स्कूलों में भोजन टिन शेड में बनते हैं जिसमें साफसफाई का अभाव है। साफ-सफाई, देखभाल और सावधानी की समुचित व्यवस्था न होने से अनेक बार विषाक्त भोजन बनने और उससे बच्चों के बीमार पडऩे की घटनाएं सामने आती हैं। गुणवत्तापूर्ण भोजन और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में मुख्य रूप से इस योजना की कमी आवश्यक मात्रा में रकम का उपलब्ध न होना और जारी की गई रकम में भी भ्रष्टाचार का व्याप्त होना है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी आकड़ों के मुताबिक प्राइमरी स्तर के प्रति छात्रों के खाना तैयार करने का खर्च अब 4.48 रुपये, उच्च प्राइमरी स्तर के प्रति छात्र पर खाना बनाने का खर्च 6.71 रुपये है। इतनी रकम में एक छात्र को गुणवत्तापूर्ण और पौष्टिक आहार दे पाने की उम्मीद करना बेकार है। सबसे बड़ी कमी इस योजना में निगरानी तंत्र की है। वर्तमान में कार्यक्रम की निगरानी के लिए केंद्र की निगरानी में राज्य-स्तर पर दिशा-नियंत्रक- सहनिरीक्षण समितियों का गठन किया गया है जो इसके निगरानी तंत्र में मंडल, जिले, ब्लॉक और ग्राम स्तर पर इस योजना के क्रियान्वयन और निरीक्षण का कार्य विभिन्न अधिकारियों द्वारा करवाते हैं, परंतु निगरानी तंत्र अपनी दायित्वों को भली-भांति नहीं पूरा करते। अनेक जगहों पर यह देखने को मिला है कि विद्यार्थियों की कम उपस्थिति संख्या होने के बावजूद रजिस्टर में अधिक एंट्री होती है। शहरों में हालत ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले काफी बेहतर है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में जांच, निगरानी और क्रियान्वयन बेहतर तरीके से नहीं हो पाता। इस योजना में सर्वाधिक नाकाम राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड हैं तो वहीं अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और कर्नाटक आदि राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
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