कोरोना वायरस ने विश्व भर में तहलका मचा रखा है। भारत में भी इसने अपने पैर पसार लिए हैं। वैश्वीकरण के दौर में हम इस तरह की बीमारियों से बच भी नहीं सकते।

एक अहम सवाल उभरता है कि क्या हम भारतीयों के पास कोई ऐसी स्वदेशी व्यवस्था है, जो ऐसी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो? ध्यान रहे कि केवल अच्छे चिकित्सकों के होने से ही हम गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पार नहीं पा सकते, क्योंकि आजकल के विषाणु मनुष्यों से अधिक ताकतवर हैं, जिनकी काट ढूंढने में वर्षों लग जाते हैं। कोरोना इसका एक उदहारण है। मेरे ध्यान में नहीं आता कि भारत ने किसी भी महामारी की दवा विश्व को उपलब्ध कराई हो या उपलब्ध कराने के गंभीर प्रयास किए हों। वर्तमान परिस्थिति में हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। दूसरे देशों की तरफ नहीं देख सकते कि वे हमारे लिए कुछ करें, हमारी समस्याओं को हल करें। इसीलिए स्वदेशी चिकित्सा पद्धति में न केवल अनुसंधान की जरूरत है, बल्कि पुरातन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी शोध की दरकार है, जो रोगों के उपचार का एक नवीन विकल्प उपलब्ध कराए। वैश्वीकरण के दौर में चुनौतियां बहुमुखी हैं। दो-तीन महीने के अंदर ही एक विषाणु ने पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है। दुनिया भर के शेयर बाजार धड़ाम से गिर गए।
कई देशों ने खुद को बंद कर लिया है, लेकिन फिर भी कोरोना अपना रास्ता तलाश ले रहा है। इस वायरस का संक्रमण एक के बाद दूसरे देशों में फैलता जा रहा है। संक्षेप में कहें तो पूरी मानवता इस विषाणु के सामने असहाय नजर आ रही है। व्यापार के कारण लोगों का आवागमन रोकना दूभर कार्य है। अब बात आती है कि इसका समाधान क्या है? समाधान लघु अवधि का न होकर दीर्घकालिक है। पहला समाधान तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना है, जो कि किसी भी दवा से ताकतवर है और इस तरह के विषाणु से लडऩे में शरीर को ताकतवर बनाता है। वैसे तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हुए शोध को लेकर कई नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं, लेकिन 2018 में मिले नोबेल पुरस्कार का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा, जो जेम्स एलिसन और तासुकु होंजो को प्रतिरक्षा आधारित कैंसर की उपचार पद्धति के अन्वेषण के लिए दिया गया। कैंसर जैसे गंभीर रोग का उपचार भी हमारे शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली से हो सकता है। ऐसे में यह ध्यान देने योग्य बात है कि योग और आयुर्वेद पूर्ण रूप से शरीर की प्रतिरक्षा को मजबूत करते हैं। जाहिर है कई दुर्दांत बीमारियों का हल हमारे देश की प्राचीन परंपरा के पास हो सकता है।
नि:संदेह ऐसा कहना पूर्ण रूप से ठीक नहीं होगा कि गंभीर रूप से बीमार लोगों का उपचार योग और आयुर्वेद पद्धति से हो सकता है, लेकिन आयुर्वेद और योग इन रोगों से एक स्तर की सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। अगर एक केंद्रित प्रयास हो तो भविष्य में आयुर्वेद से इन बीमारियों का संपूर्ण उपचार भी किया जा सकता है। हालांकि विश्व भर में आज योग और ध्यान पर अनुसंधान हो भी रहा है कि कैसे यह पद्धति रोगों से लडऩे में हमारे शरीर को सक्षम बनाती है। हावर्ड विश्वविद्यालय, एमआइटी जैसे विश्वविख्यात अनुसंधान केंद्रों में योग और ध्यान की क्रियाओं का मस्तिष्क पर पडऩे वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है, जो डिप्रेशन और बेचैनी जैसे अनेक मानसिक रोगों से लडऩे में एक प्रभावी हथियार के रूप में तेजी से उभरा है।
दुख की बात है कि भारत से निकले ध्यान पर हमने शोध नहीं किया, न ही दुनिया भर के लोगों को यकीन दिलाने की कोशिश की। भारतीय स्वदेशी तकनीकी पर भारतीयों का वर्चस्व होना ही चाहिए। भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। ऐसे में समय के साथ यहां जीवन शैली आधारित पीडि़तों की संख्या में भी तीव्रता से वृद्धि होगी। पिछले दस वर्षों में मधुमेह से पीडि़त भारतीयों की संख्या में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले 40 वर्षों में शहरी भारत में हृदय रोगियों की तादाद में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। ऐसे ही आंकड़े अन्य रोगों के लिए भी दिए जा सकते हैं। आमतौर पर हम जानते हैं कि योग, ध्यान और कई तरह की प्रचलित घरेलू औषधियां काफी हद तक इन रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं। गौर करने वाली बात है कि इन पर पश्चिम देशों में अनुसंधान हो रहा है और हमें ही वे हमारी परंपराएं समझा रहे हैं। इसके विपरीत हम अपनी हजारों सालों की उपचार पद्धति को लेकर आज भी एक निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं।
इन परिस्थितियों में भारत में स्वदेशी उपचार पर अनुसंधान की सख्त जरूरत है, जिनमें सिद्ध और आयुर्वेद प्रमुख हैं। प्रतिरक्षा आधारित उपचार आज के समय में अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं, लेकिन इस तथ्य को स्थापित करने के लिए देश में विश्व स्तर के अनुसंधान की आवश्यकता है। साथ ही विश्व स्तर के आयुर्वेदिक अस्पतालों को खोलने की जरूरत है, जिनमें उपचार के साथ स्तरीय शोध भी हों। दुनिया जिस तरह से बहुमुखी चिकित्सा आधारित समस्याओं का सामना कर रही है उसका उपचार भारत की पुरातन परंपरा के पास उपलब्ध हो सकता है। इस तरह के उपायों से न केवल विश्व को लाभ होगा, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था को भी तीव्रता मिलेगी, कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार का सृजन होगा, चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 जैसी महामारी की परिस्थिति में भारत शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाले उपायों से खुद को बचाने के साथ विश्व को भी एक सही राह दिखा सकता है।

एक अहम सवाल उभरता है कि क्या हम भारतीयों के पास कोई ऐसी स्वदेशी व्यवस्था है, जो ऐसी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो? ध्यान रहे कि केवल अच्छे चिकित्सकों के होने से ही हम गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पार नहीं पा सकते, क्योंकि आजकल के विषाणु मनुष्यों से अधिक ताकतवर हैं, जिनकी काट ढूंढने में वर्षों लग जाते हैं। कोरोना इसका एक उदहारण है। मेरे ध्यान में नहीं आता कि भारत ने किसी भी महामारी की दवा विश्व को उपलब्ध कराई हो या उपलब्ध कराने के गंभीर प्रयास किए हों। वर्तमान परिस्थिति में हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। दूसरे देशों की तरफ नहीं देख सकते कि वे हमारे लिए कुछ करें, हमारी समस्याओं को हल करें। इसीलिए स्वदेशी चिकित्सा पद्धति में न केवल अनुसंधान की जरूरत है, बल्कि पुरातन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी शोध की दरकार है, जो रोगों के उपचार का एक नवीन विकल्प उपलब्ध कराए। वैश्वीकरण के दौर में चुनौतियां बहुमुखी हैं। दो-तीन महीने के अंदर ही एक विषाणु ने पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है। दुनिया भर के शेयर बाजार धड़ाम से गिर गए।
कई देशों ने खुद को बंद कर लिया है, लेकिन फिर भी कोरोना अपना रास्ता तलाश ले रहा है। इस वायरस का संक्रमण एक के बाद दूसरे देशों में फैलता जा रहा है। संक्षेप में कहें तो पूरी मानवता इस विषाणु के सामने असहाय नजर आ रही है। व्यापार के कारण लोगों का आवागमन रोकना दूभर कार्य है। अब बात आती है कि इसका समाधान क्या है? समाधान लघु अवधि का न होकर दीर्घकालिक है। पहला समाधान तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना है, जो कि किसी भी दवा से ताकतवर है और इस तरह के विषाणु से लडऩे में शरीर को ताकतवर बनाता है। वैसे तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर हुए शोध को लेकर कई नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं, लेकिन 2018 में मिले नोबेल पुरस्कार का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा, जो जेम्स एलिसन और तासुकु होंजो को प्रतिरक्षा आधारित कैंसर की उपचार पद्धति के अन्वेषण के लिए दिया गया। कैंसर जैसे गंभीर रोग का उपचार भी हमारे शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली से हो सकता है। ऐसे में यह ध्यान देने योग्य बात है कि योग और आयुर्वेद पूर्ण रूप से शरीर की प्रतिरक्षा को मजबूत करते हैं। जाहिर है कई दुर्दांत बीमारियों का हल हमारे देश की प्राचीन परंपरा के पास हो सकता है।
नि:संदेह ऐसा कहना पूर्ण रूप से ठीक नहीं होगा कि गंभीर रूप से बीमार लोगों का उपचार योग और आयुर्वेद पद्धति से हो सकता है, लेकिन आयुर्वेद और योग इन रोगों से एक स्तर की सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। अगर एक केंद्रित प्रयास हो तो भविष्य में आयुर्वेद से इन बीमारियों का संपूर्ण उपचार भी किया जा सकता है। हालांकि विश्व भर में आज योग और ध्यान पर अनुसंधान हो भी रहा है कि कैसे यह पद्धति रोगों से लडऩे में हमारे शरीर को सक्षम बनाती है। हावर्ड विश्वविद्यालय, एमआइटी जैसे विश्वविख्यात अनुसंधान केंद्रों में योग और ध्यान की क्रियाओं का मस्तिष्क पर पडऩे वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है, जो डिप्रेशन और बेचैनी जैसे अनेक मानसिक रोगों से लडऩे में एक प्रभावी हथियार के रूप में तेजी से उभरा है।
दुख की बात है कि भारत से निकले ध्यान पर हमने शोध नहीं किया, न ही दुनिया भर के लोगों को यकीन दिलाने की कोशिश की। भारतीय स्वदेशी तकनीकी पर भारतीयों का वर्चस्व होना ही चाहिए। भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। ऐसे में समय के साथ यहां जीवन शैली आधारित पीडि़तों की संख्या में भी तीव्रता से वृद्धि होगी। पिछले दस वर्षों में मधुमेह से पीडि़त भारतीयों की संख्या में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले 40 वर्षों में शहरी भारत में हृदय रोगियों की तादाद में 500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। ऐसे ही आंकड़े अन्य रोगों के लिए भी दिए जा सकते हैं। आमतौर पर हम जानते हैं कि योग, ध्यान और कई तरह की प्रचलित घरेलू औषधियां काफी हद तक इन रोगों को नियंत्रित कर सकते हैं। गौर करने वाली बात है कि इन पर पश्चिम देशों में अनुसंधान हो रहा है और हमें ही वे हमारी परंपराएं समझा रहे हैं। इसके विपरीत हम अपनी हजारों सालों की उपचार पद्धति को लेकर आज भी एक निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं।
इन परिस्थितियों में भारत में स्वदेशी उपचार पर अनुसंधान की सख्त जरूरत है, जिनमें सिद्ध और आयुर्वेद प्रमुख हैं। प्रतिरक्षा आधारित उपचार आज के समय में अधिक प्रभावी साबित हो सकते हैं, लेकिन इस तथ्य को स्थापित करने के लिए देश में विश्व स्तर के अनुसंधान की आवश्यकता है। साथ ही विश्व स्तर के आयुर्वेदिक अस्पतालों को खोलने की जरूरत है, जिनमें उपचार के साथ स्तरीय शोध भी हों। दुनिया जिस तरह से बहुमुखी चिकित्सा आधारित समस्याओं का सामना कर रही है उसका उपचार भारत की पुरातन परंपरा के पास उपलब्ध हो सकता है। इस तरह के उपायों से न केवल विश्व को लाभ होगा, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था को भी तीव्रता मिलेगी, कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार का सृजन होगा, चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 जैसी महामारी की परिस्थिति में भारत शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाले उपायों से खुद को बचाने के साथ विश्व को भी एक सही राह दिखा सकता है।
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