
देश भर में 22 मार्च को जनता- कफ्र्यू के रूप में लॉकडाउन का प्रयोग व्यापक रूप से सफल रहा। इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने से परस्पर स्पर्श से तो दूरी बनी ही, यदि किसी संक्रमित व्यक्ति का स्पर्श खिड़की, दरवाजों, रुपयों, फाइलों, पार्सलों और वाहनों के स्टेयरिंग या सीटों से हुआ भी है तो अगले कुछ घंटों इन चीजों को नहीं छूने से वायरस मर जाएगा और नया व्यक्ति संक्रमित होने से बच जाएगा। वाद्य- यंत्र बजाकर नकारात्मक ऊर्जा दूर : जाहिर है, घरों में बंद की यह प्रक्रिया इस वायरस की कड़ी को तोड़ देगी। दुनिया के वैज्ञानिक और शोधकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस मौलिक विचार पर हैरान हैं। वैदिक-दर्शन तो हजारों सालों से मानता रहा है कि ऊर्जा ही अपने शुद्धतम स्वरूप में वह चेतना है, जो जीवन का निर्माण करती है। इसी में पांच तत्व धरती, आकाश, आग, हवा और पानी अंतरनिहित हैं। अब विज्ञान भी मानने लगा है कि सृष्टि पदार्थ और ऊर्जा से मिलकर बनी है। इसीलिए भारतीय जीवन-शैली में मंदिरों में सुबह-शाम पूजा के समय विभिन्न वाद्य- यंत्र बजाकर नकारात्मक ऊर्जा दूर करने के उपाय थे। कोरोना की दस्तक : घरों में हाथ-पैर धोकर ही प्रवेश की अनुमति थी, लेकिन पाश्चात्य जीवनशैली के प्रभाव में हमने अपनी दिनचर्या में शामिल इन तौर-तरीकों को दकियानूसी एवं अंधविश्वास कहा और नकारते गए। जबकि इन ध्वानियों के निकलने से जीवाणु, विषाणु एवं कीटाणु या तो मर जाते थे या फिर बेअसर हो जाते थे। कोरोना की दस्तक और हजारों लोगों के प्राण लील लेने से यह साफ हो गया है कि आखिर में हम ऐसी महामारियों से छुटकारा पारंपरिक ज्ञान और वातावरण की अधिकतम शुद्धता से ही पा सकते हैं। कड़ी को तोडऩे के लिए सबसे कारगर उपाय दूरी : जब हम छोटे थे और गांव में रहते थे, तब बाहर से आने पर घर में हाथ-पैर धोए बिना प्रवेश वर्जित था। लोगों से दूर रहने की सलाह भी माता-पिता देते थे। अब जब कोरोना वायरस ने महामारी का रूप ले लिया, तब हमसे इन्हीं उपायों को अपनाने के लिए कहा जा रहा है। कोरोना प्रभावित देशों ने परस्पर दूरी बनाए रखने के लिए लॉकडाउन कर लिया है। इस स्थिति में यातायात, कार्यालय, विद्यालय आदि बंद कर दिए जाते हैं। स्वास्थ्य, पेयजल, खाद्य सेवाएं ही जारी रहती हैं। एक तरह की यह आपात स्थिति है। दुनिया की पहली इस तरह की तालाबंदी अमेरिका में वर्ष 2001 में 11 सितंबर को हुए आतंकी हमले के बाद की गई थी। चूंकि कोरोना परस्पर दो व्यक्तियों के संपर्क से या उसके द्वारा छू ली गई चीजों से फैलता है, इसलिए इसकी कड़ी को तोडऩे के लिए सबसे कारगर एवं सरल उपाय दूरी बनाए रखना है। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोरोना पर विषाणु नियंत्रण का अब तक टीका बना लेने में मेडिकल विज्ञानियों को सफलता नहीं मिली है। यह सावधानी इसलिए और जरूरी हो जाती है, क्योंकि चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इटली में ऐसे हालातों के निर्माण के बाद केवल 60 साल की उम्र से नीचे के संक्रमितों का ही इलाज किया जा रहा है। चीन ने इस संक्रमण पर नियंत्रण अपनी अधिकतम आबादी को घरों में कैद करके ही पाया है। चिकित्साकर्मी लगातार डेढ़ माह से ड्यूटी पर : प्रधानमंत्री ने ताली एवं थाली बजाकर उन लोगों के प्रति कृतज्ञता प्रगट करने को कहा था, जो दिन-रात कोरोना से मुक्ति की लड़ाई में जुटे हुए हैं। इनमें चिकित्सक और नर्स समेत सभी स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं। पुलिस और मीडिया के लोग भी दिनरात सेवाएं दे रहे हैं। इस संकट की घड़ी में हमें पता चल रहा है कि वास्तव में हमारे आदर्श कौन होने चाहिए। अनेक चिकित्साकर्मी लगातार डेढ़ माह से ड्यूटी पर हैं। अर्धसैनिक बलों और सेना के जवान क्वारंटाइन केंद्रों में तैनात हैं। इस संकट की घड़ी में भी जहां एक वर्ग अपने प्राणों की बाजी लगाकर नागरिकों को बचाने में लगा है, वहीं एक वर्ग ऐसा भी है, जो ऊंची कीमतों पर मास्क, दवाएं और खाद्य सामग्री बेच रहे हैं। नकली सैनिटाइजर भी बेचे जा रहे हैं। भारत में इस समय सबसे बड़ा संकट ऐसे लोगों की पहचान करना है, जो बीते दो माह के भीतर संक्रमण से प्रभावित देशों से लौटे हैं। राजस्थान सहित अन्य राज्यों में पर्यटकों के माध्यम से भी यह बीमारी फैली है। चीन में जब कोरोना खतरनाक स्थिति में था, यदि हम तभी चेत जाते तो भारत में हालात काबू में रहते। दरअसल चीन से छात्रों और यात्रियों के लौटने के बाद ही भारत में कोरोना का संकट घिर गया था। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि लगभग हर प्रांत से कोरोना के संक्रमितों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है। नतीजन कोविड-19 पीडि़त मरीजों की संख्या 400 के ऊपर पहुंच गई है और इस वायरस के कारण मरने वालों की संख्या दस हो चुकी है। वैसे एक सकारात्मक संकेत अभी तक यह है कि सामुदायिक स्तर पर कोरोना फैलने के संकेत नहीं मिले हैं। यदि इस वायरस का सामुदायिक संचार आरंभ हो जाता है तो संक्रमित रोगियों की संख्या अचानक बढ़ जाएगी। ऐसा होने पर हमें उपकरणों से लेकर दवाओं और आइसोलेशन वार्डों तक की कमी का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल भारत में प्रतिदिन लगभग आठ हजार नमूनों के परीक्षण की क्षमता 150 प्रयोगशालाओं में है, जबकि अभी एक दिन में केवल 100 संदिग्धों की जांच के ही नमूने लिए जा रहे हैं। अलबत्ता कम्युनिटी ट्रांसमिशन के हालात यदि निर्मित हो जाते हैं तो कोरोना में एक 'सुपर स्प्रेडरÓ भी हो सकता है। मसलन उच्च संक्रामकता वाले एक संक्रमित व्यक्ति से ही कुछ समय के भीतर सैकड़ों लोग संक्रमित हो सकते हैं। प्रसिद्ध अस्थि रोग विशेषज्ञ एवं मध्य प्रदेश में शिवपुरी के मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ़. अर्जुनलाल शर्मा का कहना है कि भारत में फिलहाल माइल्ड अर्थात कम असरदार वायरस का प्रकोप है, लेकिन इस वायरस के साथ संकट यह है कि यह अपनी प्रकृति बदलने में सक्षम है। यदि यह अपनी आक्रामकता के चरम स्वरूप में आ जाता है तो इस पर काबू पाना कठिन होगा। इसीलिए भारतीय चिकित्सा एवं अनुसंधान परिषद् इसके स्वरूप पर निरंतर निगरानी रखे हुए है। भारत में ही नहीं पूरी दुनिया की जीवन शैली में जिस तरह से बदलाव आए हैं, उसने जहां मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता घटाई है, वहीं औद्योगिक, प्रौद्योगिक विकास एवं बढ़ते शहरीकरण ने वायुमंडल को प्रदूषित कर दिया है। हृदय रोग, लकवा, मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर और सांस संबंधी बीमारियां इसी जीवन शैली की देन हैं। हमारे आसपास जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण इतने विस्फोटक हो गए हैं कि उन पर व्यावहारिक रूप में नियंत्रण किए बिना, रोगाणुजनित महामारियों पर नियंत्रण संभव नहीं है। भारत जैसे पारंपरिक देश में धर्म से जुड़े जो स्वास्थ्य लाभ के उपाय हैं, उन्हें कुछ लोगों ने अपने तात्कालिक लाभ के लिए धन कमाने एवं मृत्यु के बाद मोक्ष के उपायों में बदल दिया है। इस कारण ज्यादातर मंदिरों में शंख, घंटे एवं घडिय़ालों का बजाया जाना या तो बंद हो गया है या फिर उनका मशीनीकरण हो गया है। गोया, जनता कफ्र्यू के दौरान ताली, थाली, घंटा, मंजीरों एवं शंख से सामूहिक ध्वनियां निकलते समय जो पवित्र एवं दिव्य ऊर्जा वातावरण में संचरित हुई, यही ऊर्जा और समुदाय का एकांतवास कोरोना से मुक्ति दिलाएगी।
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