1. मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी गरीब का झोला
मुल्ला नसरुद्धीन : अरे भाई! क्या हुआ? तुम बड़े परेशान दिखाई दे रहे हो।
आदमी बोला : क्या कहूं मुल्ला जी, इस दुनिया में कितना कुछ है, फिर भी मेरी झोली खाली है। मुझसे ज्यादा बदनसीब कोई नहीं है।
मुल्ला नसरुद्दीन गरीब का झोला देखकर बोले, यह तो बहुत ही बुरी बात है और उस गरीब का झोला लेकर भाग गए।
आदमी चिल्लाते हुए मुल्ला नसरुद्धीन के पीछे भागा - अरे मेरा झोला! अरे मेरा झोला!
थोड़ी दूर तक आदमी को भगाने के बाद मुल्ला नसरुद्धीन ने वो झोला सडक़ के बीचों-बीच रख दिया और खुद छुप गए। आदमी ने झोला सडक़ पर देखा, तो बहुत खुश हुआ। वह झोला उठाकर खुशी से झूमने लगा।
मुल्ला नसरुद्दीन गरीब का झोला छुपकर देख रहे थे, वो भी मन ही मन मुस्कुराये और सोचने लगे - थोड़ा टेढ़ा ही सही, लेकिन आदमी को खुश करने का अच्छा तरीका है।
कहानी से सीख
हमारे पास जो भी है, हमें उसमें संतुष्ट रहना चाहिए, क्योंकि कुछ लोगोंं के पास उतना भी नहीं होता है।
2.नीले सियार की कहानी
कहानी से सीख
हमें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, एक न एक दिन पोल खुल जाती है। किसी को भी ज्यादा दिनों तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है।
3. भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ?
भगवान शिव के जन्म की बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। भोलेनाथ का जन्म कब हुआ, कहां हुआ, किस प्रकार हुआ, इस बारे में पुराणों में अलग-अलग बातें कही गई हैं। भगवान शिव के जन्म से जुड़ी ऐसी ही एक कहानी है। शिव पुराण में लिखा है कि भगवान शिव स्वयंभू हैं, यानी उनका जन्म अपने आप ही हुआ है। वहीं, विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के माथे से निकलते तेज से शिव की उत्पति हुई थी और उनके नाभि से निकलते हुए कमल से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ था। दूसरी ओर शिव पुराण यह कहता है कि एक बार की बात है जब भगवान शिव अपने घुटने मल रहे थे और उससे निकले मैल से विष्णु जी का जन्म हुआ। इस कथा के अलावा, एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि एक बार की बात है जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई कि सबसे महान कौन है। इस बात को लेकर जब दोनों बहस कर रहे थे, तो एक खंबे के रूप में महादेव उनके बीच आ गए। वो दोनों इस रहस्य को समझ नहीं पाए और तभी अचानक एक आवाज आई, जिसने कहा कि जो भी इस खंबे का छोर ढूंढ लेगा, वही सबसे महान कहलाएगा। यह सुनते ही ब्रह्मा जी ने एक पक्षी का रूप लिया और खंबे का ऊपरी हिस्सा ढूंढने निकल गए। वहीं, विष्णु जी ने वराह का रूप धारण किया और खंबे का अंत ढूंढने निकल गए। बहुत देर तक खोजने के बाद भी दोनों में से किसी को खंबे का छोर नहीं मिला और दोनों ने हार मान ली। इसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आ गए। फिर भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने मान लिया कि वही सबसे महान और शक्तिशाली हैं। यह खंबा उनके न जन्म लेने और न मरने का प्रतीक है। इस कारण यह कहा जाता है कि भगवान शिव स्वयंभू हैं यानी वह अमर हैं।4. श्री कृष्ण को गोविंद क्यों कहते हैं?
बच्चों, जब भगवान कृष्ण छोटे थे, तो बहुत नटखट थे। उनके कन्हैया, श्याम, नंदलाला और गोपाल जैसे कई नाम थे और हर नाम के पीछे एक कहानी है। ऐसी ही कहानी उनके गोविंद नाम के पीछे भी है, तो आज की कहानी इस गोविंद नाम पर ही है। बात उन दिनों की है जब बाल-गोपाल कृष्ण जंगल में गायों को चराने जाया करते थे। एक दिन वह अपनी गायों को जंगले ले कर गए, तो कामधेनु नाम की एक गाय उनके पास आई। उस गाय ने भगवान श्री कृष्ण से कहा, मेरा नाम कामधेनु है और मैं स्वर्गलोक से आई हूं। जिस तरह आप पृथ्वी पर गायों की रक्षा करते हैं, उससे मैं बहुत प्रभावित हूं और आपका सम्मान करने के लिए आपका अभिषेक करना चाहती हूं। कामधेनु की यह बात सुन कर भगवान मुस्कुराए और उन्होंने उसे अभिषेक करने की अनुमति दे दी। इसके बाद, कामधेनु ने पवित्र जल से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया। इसके बाद, इंद्रदेव अपने हाथी एरावत पर बैठकर वहां आए और उन्होंने श्री कृष्ण से कहा कि आपके पुण्य कामों की वजह से अब से सारी दुनिया में लोग आपको गोविंद के नाम से भी जानेंगे।5.‘जन्मदिवस उपहार’
सहकारी उपभोक्ता भण्डार के वाहन से खरीद कर लाई राशन सामग्री से भरा बैग अपनी पत्नी स्नेहा को पकड़ाते हुए गिरीश मोहन ने कहा,’’ मैंने पिछली बार भी देखा कि गौरव ने राशन वितरण वाहन से बहुत थोड़ा सा सामान ही खरीदा था औैर आज तो वह राशन खरीदने के लिए घर से बाहर भी नहीं निकला जबकि अपनी गली के सभी लोगों ने ढ़ेर सारा राशन खरीदा था।’गिरीश मोहन के विचारों में सहमति प्रकट करते हुए स्नेहा बोली,’ मैंने भी गरिमा को रेड़ीवाले से सब्जी खरीदते हुए और डेयरीवाले वाहन से दूध या ब्रेड लेते हुए पिछले
दो-तीन दिनों में नहीं देखा।’
सोफे पर बैठते हुए गिरीषमोहन ने कहा,’ स्नेहा, निष्चित ही कोई गम्भीर बात है।’
सोफे पर सामने बैठते हुए स्नेहा बोली,’’ मैंने भी गरिमा को इन दिनों में घर के अहाते में घूमते हुए भी नहीं देखा। मुझे तो लगता है कि गौरव जरूर आर्थिक संकट में है और हमें उसकी मदद करनी चाहिए।’’
गिरीश मोहन का पड़ौसी गौरव एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता था किन्तु लॉकडाउन के कारण पिछले डेढ़-दो महीनों से घर पर ही था। उसकी पत्नी गरिमा गृहिणी थी और घर पर ही रहती थी। उम्र में स्नेहा से छोटी होने के कारण गरिमा उसे आदर से आण्टी कहकर बतलाती थी। दोनों के घरों के बीच की दीवार नीची होने के कारण दीवार के पास अपने-अपने घरों में खड़ी देर तक बातें किया करती थी। गौरव भी गिरीश मोहन का बहुत सम्मान करता था।
गिरीश मोहन,‘मैं भी यही सोचता हूँ लेकिन मदद करें कैसे? अगर हमने उसको रुपये वगैरह ऑफर किया और उसने बुरा मान लिया तो?’
स्नेहा, ‘ठहरो, मुझे याद आया। मैं अभी आती हूँ।’ वह अन्दर अपने बेड रूम में गई और कैलिण्डर लेकर आयी। कैलिण्डर को देखकर वह बोली,’’ आज गिरीश के बेटे का जन्म दिन है।’’
गिरीश मोहन,’’ तुम्हें क्या पता?’’
स्नेहा,‘पिछले महीने अपने पोते हितू की जन्मदिवस पार्टी में जब गरिमा आयी थी तब उसने मुझे बताया था कि उसके छोटे बेटे गोलू का जन्मदिवस इस माह की 21 तारीख को है और उसने मुझे नोट करने का भी कहा था। उसने जोर देकर यह भी कहा कि मैं उस दिन घर पर ही रहूँ। इधर-उधर नहीं जाऊँ और बेटे की जन्मदिवस पार्टी में जरूर आऊँ। इसलिए मैंने उसी दिन कैलिण्डर में चिह्न लगा लिया था ताकि मुझे याद रहे।’
गिरीश मोहन का एक बेटा उसी शहर में अपने परिवार के साथ दूसरी कॉलिनी में रहता था। पत्नी स्नेहा अपने पोते-पोती से मिलने के लिए 15-20 दिनों के अन्तराल से प्राय: उनके पास चली जाया करती थी और फिर 2-4 दिन वहाँ रहकर वापस आती थी।
स्नेहा की बात को सुनकर गिरीश मोहन बोला,’’ठीक है मैं समझ गया।’’ फिर थोड़ा विचारकर उसने स्नेहा से कहा,’’अपने घर में पोते हितू के जन्मदिवस पर पिछले महीने कई गिफ्ट आइटम आये थे उनमें से एक बढिय़ा सा आइटम छाँटकर पैक करलो। अपने घर में राशन सामग्री भी अपनी आवश्यकता से अधिक पड़ी है उसमें से एक सप्ताह की राषन सामग्री यथा आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय पती, मिर्च मषाला, घी, तेल आदि पैक कर कैरी बैग में रखलो और मेरी आलमारी में से निकालकर दो हजार रुपये का एक नोट व सादा लिफाफा लेकर आओ।’’
सुनकर स्नेहा ने कहा,’ ठीक है। मैं अभी लेकर आती हूँ।’ स्नेहा ने अपने पति गिरीश मोहन के कहे अनुसार राषन सामग्री का बैग, पैक किया हुआ गिफ्ट आइटम मय हैपी बर्थडे स्टीकर, दो हजार रुपये का नोट व एक सादा लिफाफा लेकर अपने पति के सामने रख दिया। गिरीशमोहन ने नोट को लिफाफे में डालकर उस पर ‘हैपी बर्थडे टु गोलू फ्रोम जी.मोहन’ लिखकर अपनी ऊपर की जेब में डाल लिया।
उसके बाद पति-पत्नी ने सारा सामान उठाकर अपने पड़ौसी गौरव के मुख्य द्वार पर ले गये। जैसे ही उन्होंने घण्टी बजाई गौरव की पत्नी गरिमा ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर अपने पड़ौसी अंकल-आण्टी को अचानक आया देखकर उसे आष्चर्य हुआ। गरिमा अपनी गोद में बेटे गोलू को लिए हुए थी। अपने साथ लाये हुए सामान को आगे खिसकाते हुए गिरीश मोहन और स्नेहा ने जोर से ताली बजाकर दो-तीन बार ’हैपी बर्थडे टु गोलू....... हैपी बर्थडे टु गोलू.......’ बोलते हुए दो हजार रुपये के नोट का लिफाफा गरिमा के हाथ में रख दिया। एक बार तो गरिमा ने लिफाफा लेने में संकोच किया लेकिन जब स्नेहा ने कहा,’’ गरिमा, गोलू के बर्थडे पर हमारी तरफ से यह तुच्छ भेंट है। इसे तुम नि:संकोच स्वीकार करो।’’ गरिमा ने काँपते हाथों से लिफाफे को पकड़ा । इतने में गौरव भी दरवाजे पर आ गया था। अचानक यह सब देखकर गौरव और गरिमा दोनों की आँखें नम हो गई। शिष्टाचार के नाते गौरव ने गिरीषमोहन और स्नेहा को अन्दर आकर बैठने के लिए कहा किन्तु उन्होंने कोरोना महामारी से बचाव के लिए फिजिकल डिस्टन्सिंग का हवाला देते हुए मुस्कुराकर एक बार पुन: ’हैपी बर्थडे टु गोलू.......’ कहकर अपने घर लौट आये।
ओम प्रकाश तँवर
चूरू (राज.)
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