
कई साल पहले इरफान का एक लंबा इंटरव्यू पढ़ा था जिसकी एक बात आज तक याद है । इरफान से पूछा गया-आपके लिए सफलता के क्या मायने हैं? इरफान ने अपनी सूजी सी दिखने वाली आंख की ओर इशारा करते हुए कहा - कुछ वक्त पहले मुझे एक फिल्म में हीरो का रोल ऑफर हुआ एक बड़ी हिरोइन के अपोजिट, मगर उस हिरोइन ने कह दिया कि मैं इसके साथ काम नहीं करूंगी, क्योंकि इसकी आंखें मुझे बहुत गंदी दिखती हैं। अब हालात बदल गए हैं तो एक दिन वही हिरोइन मुझसे एक पार्टी में मिली और बोली-हम साथ कब काम करेंगे ? आपकी आंखे मुझे बहुत सेक्सी लगती हैं। इरफान के मौत की खबर भी ठीक उसी वक्त आई जब हम अपने परिवार के साथ इंग्लिश मीडियम की चर्चा कर रहे थे । अभी 8 रोज पहले ही तो देखी थी ये फिल्म । अपनी बेटी की तमन्ना को पूरा करने वाले बाप की ये कहानी कहीं खुद से भी जोडऩे लगा था मैं। पूरी फिल्म के दरमियान बड़ी बेटी कस्तूरी को छेड़ रहा था- देखो ये बेटी भी बिल्कुल तुम्हारे जैसी बातें कर रही है। इंग्लिश मीडियम का इरफान बहुत सहज थे लेकिन बहुत भारी भी। एक मुश्किल वक्त को हल्की कामेडी में ढाल देना ही अभिनय है। इरफान को ये खूब आता था। लेकिन इरफान को मैंने पसंद करना शुरू किया था फिल्म हासिल से। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का वो जातिवादी छात्रनेता बिल्कुल सजीव था। फिर चरस देखी। ये वो वक्त था जब इरफान को बी ग्रेड सिनेमा का अभिनेता माना जाता था। जिमी शेरगिल और इरफान की जोड़ी थी। दुर्भाग्य ये है कि हिन्दी सिनेमा ने इरफान को अंग्रेजी सिनेमा के बाद पहचाना। 2001 में आई हालीवुड की फिल्म द वारियर ने इरफान को सबकी निगाहों में ला दिया। हिन्दी सिनेमा ने इरफान को उनकी पहली फिल्म के 13 साल बाद पहचाना। और जब ये पहचान बढ़ी तो फिर इरफान ने भी पीछे मुड़ के नहीं देखा। बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों जगह इरफान छाए रहे। ओम पुरी के बाद इरफान ही वो भारतीय अभिनेता थे जिनका हालीवुड में लंबा कॅरियर रहा। इरफान को याद करते हुए नौजवान पत्रकार साथी प्रेम शंकर मिश्र ने क्या खूब लिखा है- अब ‘गाली पर ताली’ कैसे पड़ेगी इरफान! यार इरफान भाई! मदारी फिल्म का वो डायलाग कान में गूंज रहा है ‘तुम मेरी दुनिया छिनोगे मैं तुम्हारी दुनिया में घुस जाऊंगा।’ अब कोई डॉयलॉग को इतना सीरियसली लेता है क्या? हां! सुना है तुम्हारा वो पीकू वाला डॉयलाग ‘डेथ और शिट किसी को, कभी भी, कहीं भी आ सकती है।’ लेकिन, हम जैसे करोड़ों दिवानों का क्या जिनके लिए तुमने ठसक कर कहा था ‘हमारी तो गाली पर ताली पड़ती है।’ वो गहरी आंखें, फुसफुसाना, चेहरों से उलझनों की दास्तानगोई अब कैसे होगी मेरी भाई? बड़ी मुश्किल से तो हम स्विटरलैंड की वादियों में नाचते खानों से निकलकर बीहड़ में पहुंचे थे, जहां तुमने कहा था ‘बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत तो पॉर्लियामेंट में होते हैं।’ विलायती सेंट की आदी पीढ़ी ने जब तुम्हारा अभिनय देखा न! तो पान सिंह का पसीना भी उसे परफ्यूम लगने लगा। इतना सहजता से कौन बताएगा ‘बड़े शहरों की हवा और छोटे शहरों का पानी खतरनाक होता है।’ प्रेम शंकर की बात सही है। जिस सहजता से इरफान ये सारे डायलॉग बोल गए वो अद्भुत है। दरअसल इरफान सिर्फ मुंह से नहीं बोलते थे। आवाज के साथ उनकी पूरी बॉडी लैंग्वेज सिन्क्रॉॅनईज हो जाती थी । इरफान ने अपने आखिरी दिनों में बड़ी लड़ाई लड़ी । कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उन्होंने इंग्लिश मीडियम के जरिए शानदार वापसी भी की, मगर अपनी मां का गम वो झेल नहीं सके। मां की मौत के 3 दिन बाद ही उन्होंने भी अलविदा कह दिया। लेकिन ये बात मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि इरफान ने हिन्दी सिनेमा में लीड एक्टर के मानकों को बहुत बदल दिया है। नवाजुद्दीन सरीखे अभिनेता अब हिन्दी सिनेमा में इरफान के वारिस है। अलविदा सूजी सी आंखों वाले जादूगर ।
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