महाभारत की कहानी : राजा शिवी चक्रवर्ती.
बहुत समय पहले की बात है, उशीनगर नाम के एक राज्य में एक राजा राज किया करता था। उस राजा का नाम था शिवी। वह एक चक्रवर्ती सम्राट था और अपनी महानता और दयालुता के कारण प्रसिद्ध था। उसकी दया के बारे में ऐसा कहा जाता था कि उसके दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता। भले ही उसके लिए किसी भी तरह का बलिदान क्यों न देना पड़े। यही कारण था कि उसकी दयालुता के चर्चे पृथ्वी लोक से आगे बढकऱ स्वर्ग तक भी पहुंच गए। जब इस बात का पता देवों के राजा इंद्र को चला, तो उन्होंने मन बनाया कि वह राजा शिवी की परीक्षा स्वयं लेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि क्या वाकई में राजा शिवी इतने ही दयालु हैं या यह उनका महज एक ढोंग है। यह तय करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई और अग्नि देव को भी अपने साथ योजना में शामिल होने का निवेदन किया। राजा इंद्र की बात पर अग्नि देव भी राजा शिवी की परीक्षा लेने के लिए तैयार हो गए। फिर क्या था राजा इंद्र ने एक बाज का रूप धारण किया और अग्नि देव ने एक कबूतर का। दोनों राजा शिवी के दरबार की ओर चल दिए। अग्निदेव कबूतर के रूप में आगे गए और इंद्र बाज के रूप में इस प्रकार उनके पीछे चले कि मानों एक बाज कबूतर का शिकार करने के लिए उसके पीछे उड़ रहा हो। थोड़ी ही देर में अग्निदेव कबूतर के रूप में राजा शिवी के दरबार में पहुंचे और राजा शिवी की जांघ पर बैठ गए। उन्होंने राजा से कहा कि एक बाज उसका शिकार करने के लिए पीछे आ रहा है, वह उसकी जान बचा लें। कबूतर की यह बात सुनकर राजा ने कहा- ‘बिल्कुल भी चिंता न करो। मेरे होते हुए वह बाज तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा। मैं तुम्हारी रक्षा करने का वचन देता हूं।’ राजा के वचन देते ही बाज के रूप में इंद्र देव भी शिवी के दरबार में पहुंच गए। उन्होंने राजा शिवी से कहा कि वह कबूतर मेरा शिकार है। उसे मारकर वह अपनी और अपने बच्चों की भूख मिटाएगा। बाज की बात पर राजा ने कहा- ‘मैंने इस कबूतर को वचन दिया है कि मैं इसके प्राणों की रक्षा करूंगा। इसलिए, मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता।’ राजा की यह बात सुनकर बाज बोला- ‘अगर आप इसे मुझे नहीं देंगे, तो मैं और मेरे बच्चे भोजन के अभाव में भूखे रह जाएंगे। इसलिए, इसे तो आपको देना ही होगा।’ बाज की यह बात सुन राजा शिवी थोड़ी देर सोच में पड़ गए और कुछ विचार करने लगे। कुछ देर विचार करने के बाद राजा शिवी ने बाज से कहा- ‘अगर मैं तुम्हें इस कबूतर के वजन के बराबर मांस दे दूं, तो तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की भूख मिट जाएगी। ऐसे में इस कबूतर के प्राण भी बच जाएंगे और मेरा वचन भी बना रहेगा।’ राजा कि इस बात पर बाज के रूप में आए इंद्र देव राजी हो गए, लेकिन उन्होंने राजा के सामने एक शर्त रख दी। बाज ने कहा- ‘महाराज मैं तैयार हूं, लेकिन आपको कबूतर के वजन का मांस अपने शरीर से देना होगा।’ बाज की यह बात सुनकर राजा ने सोचा कि कबूतर का वजन कितना होगा। अगर मैं अपने शरीर से ही इसके वजन के बराबर मांस दे देता हूं, तो इस कबूतर की जान बच जाएगी। यह सोचकर राजा ने अपने एक दरबारी को एक तराजू लाने का आदेश दिया। दरबार में तराजू लाया गया। राजा ने तराजू के एक पलड़े पर कबूतर को रखा और एक चाकू से अपनी जांघ से एक टुकड़ा काट कर तराजू के दूसरे पलड़े पर रख दिया, लेकिन तराजू तनिक भी नहीं हिला। यह देखकर राजा ने एक और टुकड़ा काटकर तराजू पर रखा। उसके बाद भी मांस का टुकड़ा कबूतर के वजन से काफी कम था। उन्होंने धीरे-धीरे कर अपने आधे शरीर के मांस को निकाल कर तराजू पर रख दिया, उसके बाद भी मांस का वजन कबूतर के वजन से कम ही रहा। यह देखकर राजा शिवी बहुत निराश हुए। उन्होंने निश्चय किया कि अब कुछ भी हो जाए, वह अपने वचन का मान रखते हुए कबूतर को बचाएंगे। यह सोचकर वह खुद ही तराजू के पलड़े पर बैठ गए और तराजू पर कबूतर का पलड़ा ऊपर आ गया। राजा ने बाज से कहा- ‘तुम मेरे पूरे शरीर का मांस ले लो और कबूतर को छोड़ दो।’ यह सुनकर इंद्र देव को राजा पर दया आ गई। इंद्र और अग्निदेव अपने असली रूप में आए और कहा- ‘राजा शिवी हम आपकी परीक्षा लेने आए थे और आप इस परीक्षा में सफल रहे। आप वाकई में बहुत ही दयालु और परोपकारी हैं। इस पृथ्वी पर आपकी बराबरी दूसरा और कोई नहीं कर सकता।’ इतना कहते हुए दोनों देव वहां से गायब हो गए।शिवी चक्रवर्ती की कहानी से सीख : शिवी चक्रवर्ती की कहानी से सीख मिलती है कि इंसान को किसी भी हाल में दया और परोपकार का साथ नहीं छोडऩा चाहिए, क्योंकि जिसमें दया और परोपकार वास करता है, भगवान भी सदैव उसकी मदद के लिए तैयार रहते हैं।
बगुला भगत और केकड़ा
यह कहानी है एक जंगल की जहां एक आलसी बगुला रहा करता था। वह इतना आलसी था कि कोई काम करना तो दूर, उससे अपने लिए खाना ढूंढने में भी आलस आता था। अपने इस आलस के कारण बगुले को कई बार पूरा-पूरा दिन भूखा रहना पड़ता था। नदी के किनारे अपनी एक टांग पर खड़े-खड़े दिन भर बगुला बिना मेहनत किए खाना पाने की युक्तियां सोचा करता था। एक बार की बात है, जब बगुला ऐसी ही कोई योजना बना रहा था और उसे एक आइडिया सूझा। तुरंत ही वह उस योजना को सफल बनाने में जुट गया। वह नदी के किनारे एक कोने में जाकर खड़ा हो गया और मोटे-मोटे आंसू टपकाने लगा। उसे इस प्रकार रोता देख केंकड़ा उसके पास आया और उससे पूछा, अरे बगुला भैया, क्या बात है? रो क्यों रहे हो? उसकी बात सुनकर बगुला रोते-रोते बोला, क्या बताऊं केंकड़े भाई, मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है। अपनी भूख मिटाने के लिए मैंने आज तक न जाने कितनी मछलियों को मारा है। मैं कितना स्वार्थी था, लेकिन आज मुझे इस बात का एहसास हो गया है और मैंने यह वचन लिया है कि अब मैं एक भी मछली का शिकार नहीं करूंगा। बगुले की बात सुन कर केंकड़े ने कहा, अरे ऐसा करने से तो तुम भूखे मर जाओगे। इस पर बगुले ने जवाब दिया, किसी और की जान लेकर अपना पेट भरने से तो भूखे पेट मर जाना ही अच्छा है, भाई। वैसे भी मुझे कल त्रिकालीन बाबा मिले थे और उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ ही समय में 12 साल के लिए सूखा पडऩे वाला है, जिस कारण सब मर जाएंगे। केंकड़े ने जाकर यह बात तालाब के सभी जीवों को बता दी। अच्छा, तालाब में रहने वाले कछुए ने चौंक कर पूछा, तो फिर इसका क्या हल है? इस पर बगुले भगत ने कहा, यहां से कुछ कोस दूर एक तालाब है। हम सभी उस तालाब में जाकर रह सकते हैं। वहां का पानी कभी नहीं सूखता। मैं एक-एक को अपनी पीठ पर बैठा कर वहां छोडकऱ आ सकता हूं। उसकी यह बात सुनकर सारे जानवर खुश हो गए। अगले दिन से बगुले ने अपनी पीठ पर एक-एक जीव को ले जाना शुरू कर दिया। वह उन्हें नदी से कुछ दूर ले जाता और एक चट्टान पर ले जाकर मार डालता। कई बार वह एक बार में दो जीवों को ले जाता और भर पेट भोजन करता। उस चट्टान पर उस जीवों की हड्डियों का ढेर लगने लगा था। बगुला अपने मन में सोचा करता था कि दुनिया भी कैसे मूर्ख है। इतनी आसानी से मेरी बातों में आ गए। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। एक दिन केंकड़े ने बगुले से कहा, बगुला भैया, तूम हर रोज किसी न किसी को ले जाते हो। मेरा नंबर कब आएगा? तो बगुले ने कहा, ठीक है, आज तुम्हें ले चलता हूं। यह कहकर उसने केंकड़े को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ चला। जब वो दोनों उस चट्टान के पास पहुंचे, तो केंकड़े ने वहां अन्य जीवों की हड्डियां देखी और उसका दिमाग दौड़ पड़ा। उसने तुरंत बगुले से पूछा कि ये हड्डियां किसकी हैं और जलाशय कितना दूर है? उसकी बात सुनकर बगुला जोर जोर से हंसने लगा और बोला, कोई जलाशय नहीं है और ये सारी तुम्हारे साथियों की हड्डियां हैं, जिन्हें मैं खा गया। इन सभी हड्डियों में अब तुम्हारी हड्डियां भी शामिल होने वाली हैं। उसकी यह बात सुनते ही केंकड़े ने बगुले की गर्दन अपने पंजों से पकड़ ली। कुछ ही देर में बगुले के प्राण निकल गए। इसके बाद, केंकड़ा लौट कर नदी के पास गया और अपने बाकी साथियों को सारी बात बताई। उन सभी ने केंकड़े को धन्यवाद दिया और उसकी जय जयकार की।कहानी से सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें आंख बंद करके किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए। मुसीबत के समय भी संयम और बुद्धिमानी से काम करना चाहिए।
नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन?

मूर्ख साधू और ठग
कहानी से सीख : हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए और न ही किसी की चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास करना चाहिए।
तेनाली राम और रसगुल्ले की जड़
एक वक्त की बात है, एक बार राजा कृष्णदेव राय के राज्य में दूर देश ईरान से व्यापारी आता है। महाराज उस व्यापारी का स्वागत मेहमान की तरह शानदार तरीके से करते हैं।वह मेहमान के लिए तरह-तरह के पकवान और स्वादिष्ट भोजन बनवाने का आदेश देते हैं। साथ ही कई अन्य सुविधाओं का आयोजन करते हैं। एक दिन महाराज के रसोइये ने शेख व्यापारी मेहमान के लिए रसगुल्ले बनाए। जब शेख व्यापारी ने रसगुल्ले खाए, तो उसे बहुत स्वादिष्ट लगे। उसने महल में मौजूद लोगों से रसगुल्लों की जड़ के बारे में पूछा। यह सुनकर रसोइया समेत महल के कई लोग सोच में पड़ जाते हैं। शेख व्यापारी की मांग के बारे में महाराज को जानकारी दी जाती है। फिर महाराज बिना देर किए अपने सबसे चतुर मंत्री तेनाली राम को बुलाते हैं और सारी बात बताते हैं।
महाराज की बात सुनकर तेनाली राम तुरंत रसगुल्ले की जड़ ढूंढने की चुनौती स्वीकार कर लेते हैं। वो महाराज से एक कटोरे और छुरी की मांग करते हैं, साथ ही एक दिन का समय भी मांगते हैं। फिर अगले दिन महराज की भरी सभा में तेनाली राम कटोरे में रसगुल्ले की जड़ लेकर आ जाते हैं। कटोरा मलमल के कपड़े से ढका होता है। तेनाली राम उस कटोरे के साथ शेख व्यापारी के पास जाते हैं और उन्हें कपड़ा हटाने को कहते हैं। जैसे ही शेख व्यापारी कटोरे का कपड़ा हटाता है, तो वहां बैठा हर कोई हैरान हो जाता है।
उस कटोरे में गन्ने के कई टुकड़े होते हैं। महाराज के साथ हर कोई हैरान होकर तेनाली राम से पूछता है कि यह क्या है? बुद्धिमान और चतुर तेनाली राम अपनी बात रखते हुए सभी को समझाते हैं कि कोई भी मिठाई चीनी से बनती है और चीनी को गन्ने के रस से बनाया जाता है। इसलिए, रसगुल्ले की जड़ गन्ना है। तेनालीराम की यह बात सुनकर सभी हंस पड़े और खुश होकर तेनाली राम के बात से सहमत भी हुए।
कहानी से सीख : किसी भी सवाल या परिस्थिति में चिंतित न होकर, धैर्य के साथ विषय की जड़ तक जाना चाहिए। फिर उसका जवाब ढूंढना चाहिए।
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