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पैंथर |
थार बन रहा पैंथर्स का नया ठिकाना
जयपुर .पैंथर अब अपना नया इलाका खोजने के लिए उन स्थानों की ओर रुख करने लगे हैं जहां पर पहले कभी इनकी उपस्थिति नहीं थी। यह तथ्य हाल ही में उदयपुर और जोधपुर के शोधकर्ताओं ने अपने शोधपत्र में उजागर किया है।
देश के ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक और उदयपुर के सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक डॉक्टर सतीश शर्मा, जोधपुर के माचिया बायोलोजिक पार्क के चिकित्साधिकारी डॉक्टर श्रवण सिंह राठौड़ और मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व पर्यावरण विज्ञानी डॉक्टर विजय कोली ने द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेंस, इण्डिया में प्रकाशित अपने शोधपत्र में बताया है कि आमतौर पर सदाबहार जंगलों और रिहायशी इलाकों के समीप रहने वाले पैंथर पिछले एक दशक से थार मरुस्थल की ओर रूख करने लगे हैं जबकि इन क्षेत्रों में इसकी कभी भी उपस्थिति नहीं थी। तेंदुओं का राजस्थान के थार रेगिस्तान की ओर सीमा विस्तार एवं गमन शीर्षक से प्रकाशित इस शोधपत्र में बताया गया है कि तेंदुआ एक विस्तृत क्षेत्र में पाई जाने वाली बड़ी बिल्ली की प्रजाति है जो संरक्षित एवं मानव प्रधान दोनों क्षेत्रों पर निवास करती है। भारत में यह मुख्यत: पर्णपाती, सदाबहार, झाड़ीदार जंगल और मानव निवास के किनारों पर पाई जाती है लेकिन इसकी उपस्थिति अभी तक राजस्थान के थार मरुस्थल और गुजरात के कच्छ क्षेत्र के शुष्क क्षेत्रों एवं उच्च हिमालय क्षेत्रों में नहीं थी।
थार के इन पांच जिलों में नजर आए पैंथर
शोधकर्ता डॉक्टर विजय कोली ने बताया कि इस शोध में इस प्रजाति की उपस्थिति राजस्थान के उन पांच जिलों से दर्ज की गई जो कि थार मरुस्थल के विस्तार सीमा में पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि जोधपुर, जैसलमेर, चूरू, बाड़मेर और बीकानेर जिलों में यह प्रजाति अलग.अलग प्रकार के आवास क्षेत्रों में पाई गई। जैसे यूनिवर्सिटी कैम्पस, फैक्ट्री कैम्पस, खेतों के पास, कुंओं में घिरा हुआ, झाड़ी विस्तार क्षेत्र और मनुष्य निवास क्षेत्रों के समीप। उन्होंने बताया कि यह सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य है कि सारे पहचाने गए पैंथर नर थे।
55 से लेकर 413 किमी दूरी तय की
डॉक्टर कोली ने बताया कि उन्होंने शोध के लिए पांच जिलों में पिछले दस सालों की उन 14 घटनाओं को आधार बनाया है जिसमें से इन पैंथर्स की उपस्थिति अपनी ज्ञात सीमा क्षेत्र से 55ण्4 किलोमीटर से लेकर 413.4 किलोमीटर तक दर्ज की गई जो कि थार मरुस्थल के विस्तार क्षेत्र में है। इनमें से अधिकतर मामलों में इन नर तेंदुओं को वन विभाग द्वारा पकडकऱ पुन: अपनी निर्धारित सीमा क्षेत्र में छोड़ा गया।
ये हैं संभावित कारण
पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर सतीश शर्मा का कहना है कि सामान्यत: पैंथर अपनी टेरेटरी को बनाए रखते हैं। उस टेरेटरी में वह दूसरे पेंथर को प्रवेश नहीं करने देते। अत: निश्चित सीमा क्षेत्र में पैंथर की संख्या बढऩे या साथ.साथ नर पैंथर की संख्या बढऩे से एक निश्चित सीमा क्षेत्र में सभी नर पैंथर का रहना मुश्किल है। शक्तिशाली व प्रबल नर तो अपनी सीमा स्थापित लेते हैं परन्तु दुर्बल या हारे हुए नर पैंथर को वहां से विस्थापित होकर दूसरी जगह जाना पड़ता है। ऐसे में जब किसी क्षेत्र विशेष में पैंथर्स की संख्या बढ़ जाती है तो नए नर पैंथर को अपनी स्वतंत्र टेरेटरी की तलाश में अन्य इलाकों की ओर रुख करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामले रणथंभौर में भी देखे गए हैं जहां टाईगर ने अपनी संख्या बढऩे पर अन्य क्षेत्रों की ओर रुख किया।
डॉक्टर शर्मा के अनुसार दूसरा कारण इन्दिरा गांधी नहर की उपस्थिति के कारण थार मरुस्थल में सिंचाई की सुविधाएं खेती और पौधरोपण क्रियाओं में वृद्धि हुई है। इन सभी क्रियाओं से थार मरुस्थल में वनस्पति आवरण की मात्रा बढ़ गई है। साथ ही नहर की उपस्थिति की वजह से पानी की उपलब्धता भी पूरे साल पाई जाती है। यह सारी स्थितियां पैंथर के निवास के लिए एक अनुकूल वातावरण मुहैया कराती हैं। शर्मा के अनुसार तीसरा कारण है कि बढ़ते वनस्पतिक आवरण एवं पानी की उपलब्धता के कारण थार मरुस्थल में पालतू एवं वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इनकी पूरे साल अच्छी संख्या में उपस्थिति के कारण पैंथर सालभर शिकार मिल जाता है। यह स्थिति भविष्य में इस प्रजाति को यहां स्थापित करने में भी मदद करेगी।
थार में भी स्थाई बसेरा संभव
शोधकर्ता जोधपुर के माचिया बायोलोजिक पार्क के चिकित्साधिकारी डॉक्टर श्रवण सिंह राठौड़ का कहना है कि वर्तमान शोध में यह पाया गया कि वर्तमान में अभी तक केवल नर तेंदुए ही थार मरुस्थल में प्रवेश कर रहे हैं। अत: अगर भविष्य में मादा तेंदुए भी प्रवेश करें तो थार मरूस्थल में यह प्रजाति अपनी उपस्थितियां सीमा क्षेत्र स्थाई रूप से स्थापित कर सकती है। इसके अलावा एक संभावना यह भी है कि भविष्य में इन क्षेत्रों में मानव तेंदुओं के संघर्ष के मामलों में वृद्धि हो सकती है।
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