
देश में पिछले कुछ दशकों से हो रही आर्थिक प्रगति और तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने ऐसी लिविंग स्पेसेज की डिमांड क्रिएट की है जो न केवल अफोर्डेबल हों, बल्कि ज्यादा से ज्यादा सुविधाओं से युक्त भी हों। इतना ही नहीं, सरकारी स्तर पर भी हमेशा स्मार्ट सिटीज बसाने और कई आवासीय योजनाओं पर काम किया जाता है। इस रियल एस्टेट बूम ने आर्किटेक्ट्स की जॉब को काफी महत्वपूर्ण बना दिया है। किसी इमारत की डिजाइन की प्लानिंग करने से लेकर उसे धरातल पर उतारने तक, एक आर्किटेक्चर का कॅरियर आर्ट व साइंस के संगम की तरह काम करता है। इमारतों की प्लानिंग व डिजाइनिंग से लेकर उनके कंस्ट्रक्शन को रिव्यू करने के लिए आर्किटेक्ट्स ही जिम्मेदार होते हैं। वे न केवल किसी इमारत का लुक, शेप व फंक्शन डिजाइन करते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि वह सुरक्षित हो और कानूनी नियमों का पालन कर बनाई गई हो। उन्हें किसी इमारत के फंक्शनल व टेक्निकल फैक्टर्स समेत एस्थेटिक्स का भी ध्यान रखना होता है। आर्किटेक्ट्स की वजह से ही बुर्ज खलीफा और गगनहाइम म्यूजियम जैसे आधुनिक आश्चर्य आज हमारे सामने हैं। जानिए इस फील्ड में कैसे रख सकते हैं कदम और किस तरह बढ़ सकते हैं आगे।
इस तरह करें तैयारी
एक आर्किटेक्ट बनने के लिए साइंस स्ट्रीम में 10+2 पास करने के बाद आप आर्किटक्चर की रेगुलेटिंग बॉडी, काउंसिल ऑफ आर्किटेक्ट्स (सीओए) की ओर से कंडक्ट किए जाने वाले एग्जाम, नेशनल एप्टिट्यूड टेस्ट इन आर्किटेक्चर (नाटा) देकर सरकारी व निजी इंस्टीट्यूट्स में पांच वर्षीय बीआर्क (बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर) कोर्स में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन ले सकते हैं। यह एग्जाम आपकी ड्रॉइंग व ऑब्जर्वेशनल स्किल्स, सेंस ऑफ प्रोपोर्शन, एस्थेटिक सेंसिटिविटी और क्रिटिकल थिंकिंग एबिलिटी की जांच करता है। नाटा के अलावा आप जॉएंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) मेन के जरिए एनआईटीज और जेईई एडवांस्ड के जरिए आईआईटीज के आर्किटेक्चर के ग्रेजुएशन कोर्सेज में भी एडमिशन पा सकते हैं। आर्किटेक्चर में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए आपको ग्रेजुएट एप्टिट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) देना होगा, जिसमें आपकी नॉलेज को परखा जाएगा। इसे क्लियर करने के बाद आप स्कॉलरशिप के साथ एमआर्क (मास्टर ऑफ आर्किटेक्चर) में दाखिला ले सकते हैं।कॅरियर में प्रोग्रेस
- कोर्स के अंतिम वर्ष में किसी आर्किटेक्चरल फर्म के साथ प्रैक्टिकल अप्रेंटिसशिप करें।
- ग्रेजुएशन के बाद छोटे असाइनमेंट्स मैनेज करने के लिए अप्रेंटिसशिप करें और वहां सीनियर्स से डिजाइन की बारीकियां सीखें।
- अप्रेंटिसशिप के बाद आप छोटे प्रोजेक्ट्स संभाल सकते हैं और आर्किटेक्चरल प्लान्स बना सकते हैं।
- अनुभवी व सीनियर प्रोफेशनल्स बड़े असाइनमेंट्स पर काम करते हैं। इनकी एक जूनियर आर्किटेक्ट्स व आर्किटेक्चरल असिस्टेंट्स की टीम होती है। वे कंसल्टिंग, टेक्निकल इश्यूज के इंस्पेक्शन व डीलिंग, कॉस्टिंग व लीगल डिसिजंस जैसी जिम्मेदारियां निभाते हैं। यहां तक पहुुंचने में 10 वर्ष या उससे अधिक समय लग जाता है।
एम्प्लॉयमेंट ऑपच्र्युनिटीज
आर्किटेक्चर डिजाइनिंग और आर्किटेक्चर एंड इंजीनियरिंग सर्विस फम्र्स सहित सीपीडब्ल्यूडी, को-ऑपरेटिव सोसाइटीज, अर्बन डवलपमेंट डिपार्टमेंट, हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (हुडको), नेशनल बिल्डिंग ऑर्गनाइजेशन एवं विभिन्न प्राइवेट आंत्रप्रेन्योरियल वेंचर्स में एम्प्लॉयमेंट मिल सकता है।जरूरी हैं ये स्किल्स
एक अच्छा आर्किटेक्ट होने के लिए आप में क्रिएटिविटी के साथ मैथेमैटिकल, स्केचिंग और प्रोफेशन से जुड़ी कानूनी भाषा समझने की एबिलिटीज व ऑब्जर्वेशनल और सुपरवाइजरी स्किल्स के अलावा सोशल व एनवायरनमेंटल इश्यूज की जानकारी होनी आवश्यक है।प्रमुख इंस्टीट्यूशंस
- स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, नई दिल्ली
- सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद
- सर जे. जे. कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर, मुम्बई
- आईआईटी रुडक़ी
- चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर
विभिन्न जॉब रोल्स
एग्जिबिशन डिजाइनर्स : ये म्यूजियम्स व गैलेरीज जैसे कल्चरल इंस्टीट्यूशंस व ट्रेड शोज, कॉन्फ्रेंसेज व शोकेसेज जैसे कमर्शियल फोकस्ड इंस्टीट्यूशंस आदि के स्पेस को डिजाइन करने व उनमें लगने वाली प्रदर्शनियों के लिए जिम्मेदार होते हैं।इंटीरियर आर्किटेक्ट्स : ये इमारतों की इंटीरियर स्पेस के फंक्शंस डिजाइन करते हैं। इनमें दीवारों व खिड़कियों की पोजीशन से लेकर लाइट की फिटिंग का इंतजाम करना तक शामिल है।
लैंडस्केप आर्किटेक्ट्स/डिजाइनर्स : इनके काम में रोड्स, वॉकवेज, पब्लिक पार्क, प्लेग्राउंड्स व रेजिडेंशियल एरियाज जैसे फंक्शनल लैंडस्केप्स की प्लानिंग व डिजाइनिंग शामिल होती हैं।
आर्किटेक्चरल इंजीनियर्स : आर्किटेक्ट्स व इंजीनियर्स के बीच की कड़ी के रूप में इनका काम किसी इमारत के स्ट्रक्चरल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, वेंटिलेशन और फायर प्रोटेक्शन जैसे एफिशिएंट बिल्डिंग सिस्टम्स बनाकर यह सुनिश्चित करना है कि उसके कंस्ट्रक्शन, डिजाइन व ऑपरेशन में कोई कमी न रह जाए।
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