टीबी में गांठ...घबराएं नहीं
टीबी होने पर शरीर में गांठ भी निकल सकती है, ऐसा होने पर घबराने की जरूरत नहीं है। गांठों का जब इलाज शुरू होता है, तो और भी गांठें निकलने लगती हैं। यह देख मरीज घबरा जाते हैं, लेकिन दवा चलती रहने से दिक्कतें दूर हो जाती हैं। करीब 75 फीसदी से अधिक मरीज बिना इलाज बदले ठीक हो जाते हैं। हाल ही में जारी हुए एक शोध में यह बात सामने आई है। शोध में शामिल ज्यादातर मरीज गले की गांठ और फेफड़े की टीबी से संबंधित थे। इन मरीजों के इलाज में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया गया। फिर भी 75 फीसदी ठीक हो गए। जिन मरीजों के फेफड़े या पेट में पानी भर गया था, उनका पानी निकाला गया।
जो गंभीर स्थिति में थे, उन्हें भर्ती करने नियमित तौर पर दवाएं और पोषक तत्व दिए गए। धीरे-धीरे यह मरीज ठीक हो गए। असल में एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के मरीजों में इलाज के दौरान कई गांठें निकल आने से कुछ चिकित्सक भी कंफ्यूज हो जाते हैं। वहीं मरीजों को लगता है कि उनका इलाज गलत दिशा में जा रहा है और टीबी पूरे शरीर में फैल रही है। एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी में इलाज शुरू होने के दो से तीन माह के अंदर लक्षण बढऩा सामान्य घटना है। बस दवाएं नियमित लें। खान-पान में पौष्टिक और प्रोटीन वाली चीजें बढ़ा दें।
यह होता है एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी
फेफड़े की टीबी को पल्मोनरी और शरीर के अन्य हिस्से की टीबी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं। टीबी के मरीजों में करीब 70 फीसदी में पल्मोनरी और करीब 30 फीसदी में एक्स्ट्रा पल्मोनरी होती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी के मरीजों से दूसरों को संक्रमण का खतरा नहीं होता है। इस बीमारी की वजह रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी बताई जाती है। यह जिस अंग में होती है, वहां सूजन या दर्द, हल्का बुखार, रात में पसीना आता है, भूख नहीं लगती है। अगर एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी फेफड़े में हो जाए तो वहां भी पानी भर जाता है। यह जिस अंग में होती है, वहां गांठ बन जाती है। गांठ से पानी निकालकर जांच की जाती है या संबंधित अंग की सीटी स्कैन कराया जाता है।
0 comments:
Post a comment