
विगत
12 मई को प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने
देश के साथ
संवाद करते हुए
‘आत्मनिर्भर भारत’ की ओर
बढऩे की बात
कही। भारत के
सकल घरेलू उत्पाद
का करीब 10 फीसद
हिस्सा यानी 20 लाख करोड़
रुपये राहत पैकेज
के रूप में
दिए जाने की
घोषणा भी प्रधानमंत्री
ने की। कुछ
मामलों में इसे
भविष्य के भारत
के आर्थिक मॉडल
की मौलिक दृष्टि
कहना गलत नहीं
होगा। वर्ष 1947 में
देश को राजनीतिक
आजादी हासिल हो
गई थी, परंतु
आर्थिक आजादी से जुड़े
कई प्रश्न अभी
भी अनुत्तरित हैं।
मोदी द्वारा ‘आत्मनिर्भर
भारत’ के संकल्प
में उन प्रश्नों
के उत्तर मिलने
की आस नजर
आती है। यद्यपि
महात्मा गांधी ने अपने
सामाजिक आर्थिक दृष्टिकोण में
भावी भारत के
आर्थिक मॉडल पर
चिंतन किया है,
किंतु भारत के
लिए यह दुर्योग
की स्थिति रही
कि आजादी के
बाद वे अधिक
समय तक जीवित
नहीं रहे। कालक्रम
में भारतीय जनसंघ
के नेता दीनदयाल
उपाध्याय ने भी
इन प्रश्नों पर
समाधानपरक दृष्टि दी है,
बावजूद इसके आजादी
के बाद के
सात दशकों में
भारत के आर्थिक
मॉडल पर कोई
मौलिक दृष्टि व्यवहार
में नहीं आ
पाई। कोरोना संकट
ने हमारे देश
में समाजवादी मॉडल
तथा ‘याराना-पूंजीवाद’
की वजह से
पनपी खामियों को
उजागर किया है।
जैसे-जैसे सरकारीकरण
का प्रभाव बढ़ता
गया, ग्रामीण क्षेत्रों
की आत्मनिर्भरता घटने
लगी और गांव
सरकारों की दया
पर निर्भर होते
गए। समाज और
सहकार की स्फूर्त
भावना क्षीण होती
गई। कई मायनों
में गांवों ने
गत सात दशकों
में अपनी ‘आर्थिक
स्वतंत्रता’ को गंवाया
है। कोरोना संकट
में मजदूरों की
घर वापसी की
स्थिति ने दशकों
तक देश पर
शासन करने वाले
नीति-निर्माताओं को
आईना दिखाया है।
आश्चर्य कि मजदूरों
की वापसी को
‘पलायन’ कहा जा
रहा है। यह
पलायन नहीं है।
पलायन तो वह
था, जब वे
अपना गांव-घर
छोडकऱ प्रवासी बनने को
मजबूर हुए थे।
यह तो अपने
घर लौटने का
दौर है। इस
स्थिति में दोषारोपण
करने का नैतिक
हक कम से
कम उन लोगों
के पास नहीं
है जिन्होंने दशकों
तक देश के
नीति-निर्माण तंत्र
को चलाया है।
खैर अब जब
मजदूर गांवों की
तरफ कूच कर
ही चुके हैं
तो वे जल्दी
शहर वापस आएंगे,
इसकी संभावना कम
है। इससे दो
तरह के संकट
पैदा होने की
आशंका है। एक
तो गांवों में
बेरोजगारी का संकट
खड़ा होगा, दूसरा
शहरी क्षेत्रों में
उद्योगों को श्रमिकों
के संकट से
दो-चार होना
पड़ सकता है।
ऐसे में 20 लाख
करोड़ रुपये के
आर्थिक राहत पैकेज
से ‘आत्मनिर्भरता’ की
तरफ आगे बढऩे
की प्रधानमंत्री की
घोषणा इन संकटों
से देश को
उबारने का कारगर
समाधान साबित हो सकता
है। आत्मनिर्भरता तब
हासिल होगी जब
ग्रामीण भारत स्वयं
की बुनियादी जरूरतों
के लिए स्वयं
का उत्पादन करने
का आत्मबल हासिल
करेगा। शिक्षा के अवसर
प्रतिस्पर्धी, कौशल युक्त
तथा सबके लिए
समान होंगे। छोटे
स्तर की आर्थिक
शुरुआत को ‘दरोगाओं’
के नियंत्रण वाली
निगरानी से मुक्ति
मिलेगी। असंगठित क्षेत्र को
भयमुक्त एवं न्यायपूर्ण
परिवेश मिलेगा। यह तब
संभव होगा जब
देश में कृषि
आधारित अर्थव्यवस्था का ग्रामीण
मॉडल तैयार है।
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