
पटना । बिहार की सियासत ने कुछ साबित किया हो या न किया हो लेकिन ये साबित जरूर किया है कि सियासत में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। चेला कब गुरू बन जाता है, मोहरा कब वजीर और पुराने दोस्त कब दुश्मन बन जाते है और सहयोगी, प्रतिद्ववंदी में तब्दिल हो जाता है ये पता नहीं चलता है। बिहार में इस साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं और इस सियासी समर में रानीति के दांव-पेंच, नफा-नुकसान की गणित और राजनीतिक गतिविधियां जारी हो गई हैं। वैसे तो बिहार में चुनावी दंगल दो ही प्रमुख दलों के बीच है। एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है तो दूसरी तरफ महागठबंधन। वैसे तो एनडीए में सबकुछ ठीक है ऐसा पूरी तरह से नहीं कह सकते क्योंकि बीते कुछ दिनों से उसके एक घटक दल के नेता चिराग पासवान ने जिस तरह के तेवर नीतीश सरकार के प्रति दिखाए हैं, उससे सारी आशंकाओं को बल मिलता है।
लेकिन महागठबंधन में तो पिछले कई महीनों से रार मची है। महागठबंधन के तीन घटक दलों के नेता लगातार तेजस्वी यादव से नाराज चल रहे हैं। हम पार्टी के सुप्रीमो जीतनराम मांढी लगातार तेजस्वी के प्रति हमलावर रहे हैं। लेकिन बीती रात महागठबंधन के तीन दलों के नेता आपस में मिले तो चर्चाएं तेज हो गई कि बिहार में महागठबंधन के नेताओं के बीच कुछ तो खिचड़ी पक रही है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के आवास पर लगभग 11.30 रात तक चली बैठक में रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और वीआईपी के मुकेश सहनी ने मन्त्रणा की। बताया जाता है कि चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन में समन्वय समिति के गठन एवं सीट शेयरिंग के संबंध में तीनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। वैसे तो पहले भी ये तीनों नेता आपस में कई बार मिल चुके है। लेकिन इस बार की मुलाकात के राजनीतिक अर्थ निकले जा रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि तीनों नेताओं की मुलाकात महागठबंधन के अन्य दोनों बड़े दलों - राजद और कांग्रेस पर सीट शेयरिंग के लिए दबाव बनाना भी हो सकता है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह तेजस्वी द्वारा इन नेताओं को लगातार नजरअंदाज करना भी है जिसकी वजह से ये तीनों नेता गोलबंद होकर लगातार तेजस्वी पर दवाब बनाने की कोशिश में लगे हैं।
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